राज्यपालों की ओर से विधेयकों को रोके जाने की आलोचना

राज्यपालों की ओर से विधेयकों को रोके जाने की आलोचना करते हुए सर्वोच्च अदालत की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा उनका काम उन पर फैसला लेना है। यह शर्म की बात है कि अदालत को राज्यपालों को उनकी डय़ूटी याद दिलानी पड़े।
हैदराबाद में हुए कार्यक्रम में उन्होंने महाराष्ट्र व पंजाब के फैसलो का भी जिक्र किया। कहा कि सवाल यह था कि क्या राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट कराने का कोई ठोस सबूत थे कि मौजूदा सरकार विधायकों का विास खो चुकी है।
राज्यपालों को अदालतों में खींचने को भी उन्होंने संविधान के तहत स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं कहा। नोटबंदी के फैसले का भी उन्होंने विरोध किया और काला धन जमा करने वालों को हुए फायदे व आम लोगों को हुई परेशानी पर भी बोलीं।
हालांकि जस्टिस उन पांच जजों वाली पीठ के हिस्सा थीं, जिसने सरकार के इस फैसले में असहमति जताई थी कि यह जल्दबाजी में लागू किया गया। उनका यह कहना कि इससे सिर्फ कानून तोडऩे वालों को ही फायदा हुआ, जिन्होंने अपना काला धन सफेद बना लिया।
सरकार पर इस तरह के आरोप विपक्ष द्वारा भी लगाए जाते रहे हैं। यह सच है कि नोटबंदी के दौर को याद कर आम लोगों के अभी भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। राज्यपाल संवैधानिक पद है, जिसकी गरिमा का ख्याल रखा जाना चाहिए। लंबे समय से देखने में आ रहा है कि राज्य सरकारों और राज्यपाल के दरम्यान सामंजस्य नहीं बन पाता।
खासकर जहां-जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं, वहां राज्यपाल केंद्र की शह पर अड़चनें खड़ी करते हैं, जिससे सरकारों को अदालत का रुख करने को मजबूर होना पड़ता है।
इस विवाद का निपटारा सत्ताधारी दल को संवैधानिक तौर पर करने की पहल करनी चाहिए।
गौरतलब है जस्टिस नागरत्ना अपने कड़े फैसलों के लिए जानी जाती हैं और 2027 में उनके पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की संभावना है। ऐसे में उनके किसी भी नजरिये या तल्ख टिप्पणी की उपेक्षा की जानी उचित नहीं कही जा सकती। ये विचार उनके नितांत निजी हो सकते हैं मगर इनसे असहमति नहीं रखी जा सकती।
किसी भी सरकार के सौ फीसद फैसले सही नहीं ठहराये जा सकते, थोड़ी-बहुत ऊंच-नीच से मुकरा नहीं जा सकता। तब भी जबकि नोटबंदी के फैसले पर अब तक कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

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