आतंकियों को ट्रैक नहीं कर पा रहीं एजेंसियां, डोडा के जंगल में 9 हजार फुट की ऊंचाई पर बैठे हुए हैं।

सूत्रों जानकारी मिली है कि डोडा के जंगल में आतंकी इतनी ऊंचाई पर हैं कि वहां से उन्हें पूरा डोडा दिख रहा है। वहीं, इन आतंकियों के ठिकाने का खुफिया एजेंसियों को पता नहीं चल पा रहा है। हालांकि इन इलाकों में लोगों की मौजूदगी के बावजूद उनका कोई सुराग नहीं लग रहा है। यही वजह है कि सेना इन तक पहुंच नहीं पा रही है। आतंकियों के पास अल्ट्रासेट हैं। हमले के वक्त इनके सीने पर बाॅडीकैम लगा हुआ था, जिससे रियल टाइम एक्शन कर रहे थे। संभव है कि सीमा पार बैठे हैंडलर उन्हें बता भी रहे हों कि किस तरह की कार्रवाई करनी है। इस तरह की रणनीति अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकियों की होती है। पूर्व बिग्रेडियर विजय सागर धीमान का दावा है कि यह आतंकी अफगानिस्तान से प्रशिक्षित होकर आए हैं। हमले में इस्तेमाल हथियार अमेरिका और चीन से लिए गए हैं। हमला करने की रणनीति पूरी तरह से अफगानी आतंकियों की तरह है। आतंकी डोडा के देसा जंगल के सबसे ऊपरी हिस्से पर कब्जा करके बैठे हुए हैं, ताकि उन्हें सेना की हर मूवमेंट की जानकारी मिलती रहे।

डोडा के जंगलों में 1840 में जनरल जोरावर सिंह की सेना जिन रूट का इस्तेमाल करती थी, उन्हीं रूट का इस्तेमाल डोडा में आतंकी कर रहे हैं। यह आतंकी बनी, छत्रगला, गुलडंडा, भद्रवाह, गंदोह, किश्तवाड़ और फिर डोडा के चरवाहों का पारंपरिक रूट इस्तेमाल कर रहे हैं। यह 18वीं सदी से इस्तेमाल होता आया है।

  • विजय सागर धीमान, पूर्व बिग्रेडियर
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