अमेरिका ने एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी वृद्धि की घोषणा की है जिससे भारत के युवाओं और तकनीकी पेशेवरों के लिए अमेरिका में रोजगार और उच्च शिक्षा के अवसर कठिन हो गए हैं। इस कदम के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भारतीय प्रधानमंत्री कमजोर हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस देश की कमजोर नीतियों का जिम्मेदार कांग्रेस का लंबे शासनकाल है, जिसने युवाओं के रोजगार और अवसरों के निर्माण में पर्याप्त प्रयास नहीं किए।दशकों तक कांग्रेस के शासन में रोजगार सृजन ठहर गया और युवाओं के लिए देश में ही भविष्य बनाने के अवसर सीमित रहे। परिणामस्वरूप, पढ़ाई और रोजगार के लिए युवा विदेश की ओर रुख करने लगे। अमेरिकी एच-1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि ने इस समस्या को और स्पष्ट कर दिया है। अब अमेरिका में काम करने या उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना देखने वाले भारतीयों के लिए रास्ते और कठिन हो गए हैं।कांग्रेस के लंबे शासनकाल में उच्च तकनीकी उद्योगों, स्टार्टअप्स और कौशल विकास में पर्याप्त निवेश नहीं हुआ। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सीमित रहे। यही कारण है कि भारत के युवा विदेश पलायन का रास्ता चुनते रहे। वहीं, मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘अटल इनोवेशन मिशन’ जैसी योजनाओं के जरिए युवाओं को देश में ही अवसर देने का प्रयास शुरू किया है। अगर कांग्रेस ने अपने शासनकाल में सही नीतियाँ अपनाई होती— जैसे रोजगार सृजन, स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन और कौशल प्रशिक्षण केंद्र—तो आज भारत इतना विदेशी निर्भर नहीं होता और युवाओं का विदेश पलायन इतनी बड़ी समस्या नहीं बनती।

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भरता’ पर जोर देते हुए कहा कि दूसरे देशों पर निर्भरता भारत की सबसे बड़ी दुश्मन है। गुजरात के भावनगर में ‘समुद्र से समृद्धि’ कार्यक्रम में उन्होंने कुल 34,200 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया और कहा, “हमें दूसरों पर निर्भरता खत्म करनी होगी। जितना ज्यादा हम दूसरों पर निर्भर होंगे, विफलता की दर उतनी ही अधिक होगी।” उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत को चिप्स से लेकर जहाजों तक अपनी क्षमताओं का विकास करना होगा।

उधर, उद्योग जगत ने भी अमेरिकी फैसले की गंभीरता को स्वीकार किया है। इंफोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई ने कहा कि एच-1बी वीज़ा पर भारी शुल्क से कंपनियों के नए आवेदन घट सकते हैं, लेकिन यह गलत धारणा है कि कंपनियां सस्ते श्रम के लिए वीज़ा का इस्तेमाल करती हैं। शीर्ष 20 एच-1बी नियोक्ताओं का औसत वेतन एक लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक है।

वहीं नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि इस अमेरिकी फैसले से नवाचार और स्टार्टअप की अगली लहर अब भारतीय शहरों जैसे बेंगलुरु और हैदराबाद की ओर मुड़ेगी। उन्होंने कहा, “अमेरिका का नुकसान भारत का लाभ होगा।” इसी तरह, उद्योग निकाय नैस्कॉम ने चेतावनी दी कि वीज़ा शुल्क बढ़ने से भारतीय तकनीकी कंपनियों और वैश्विक परियोजनाओं की व्यावसायिक निरंतरता प्रभावित होगी, लेकिन भारतीय कंपनियां पहले से ही स्थानीय नियुक्तियों बढ़ाकर इन वीज़ाओं पर निर्भरता घटा रही हैं।

इस बीच, नैस्कॉम ने यह भी कहा कि एच-1बी कर्मचारी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं और ऐसे नीतिगत बदलावों के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए, जिससे कंपनियां और पेशेवर व्यवधान को कम कर सकें। उच्च-कौशल प्रतिभा वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और नवाचार के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य अग्रणी तकनीकों में तेज़ प्रगति हो रही है।

देखा जाये तो अमेरिका का एच-1बी वीज़ा शुल्क बढ़ाना भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों है। चुनौती इसलिए कि यह अमेरिकी रोजगार के अवसर कठिन बना देता है, और अवसर इसलिए कि भारत के भीतर नवाचार, स्टार्टअप और कौशल विकास को बढ़ावा मिलेगा। कांग्रेस की पिछली कमजोर नीतियों ने युवाओं को विदेश की ओर धकेला, जबकि वर्तमान सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रास्ते पर युवाओं के लिए अवसर सृजित कर रही है। यही वह रास्ता है जो भारत को विदेशी निर्भरता से बाहर निकालकर वैश्विक स्तर पर सशक्त बना सकता है।

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