भाजपा-आरएसएस के संबंध नाजुक, वर्तमान में संबंध सुधारना बेहद महत्त्वपूर्ण।(सत्ता और संघटन का सीधे टकराव ठीक नही) डॉ सुनील कुमार मिश्रा

देश में 18 वीं लोकसभा चुनाव के मध्य में बीजेपी पार्टी के अध्यक्ष का यह बयान की बीजेपी को अब आरएसएस की जरूरत नहीं है, बीजेपी बहुत बड़ी हो गई है,यह बयान कई अफवाहों को जन्म दे गया और ठीक मध्य चुनाव में आर एस एस द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तृतीय वर्ग प्रशिक्षण आयोजन करना कई बातो को जन्म दे रहा है।दरअसल, काफी लंबे समय से इस बात के संकेत मिल रहे थे कि दोनों संगठनों के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। इसका सबसे पहला संकेत तब मिला था जब आरएसएस ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर आयोजित होने वाले भव्य कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया था। संगठन लगभग दो साल से इस बात की योजना बना रहा था कि संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर 2025 में पूरे देश में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों के जरिए संघ को देश के सभी गांवों तक ले जाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया था। इसके लिए विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही थी। संघ सूत्रों के अनुसार, लोकसभा चुनावों के पूर्व ही भाजपा नेतृत्व को यूपी में संगठन और सरकार में सब कुछ ठीक न होने की जानकारी दे दी गई थी। चुनाव के बीच भी सरकार और संगठन के आपसी तालमेल के बिगड़ने की जानकारी पार्टी नेतृत्व को दे दी गई थी। लेकिन इसके बाद भी इसे सुधारने की कोशिश नहीं की गई। उलटे भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं के बयानों ने स्थिति को और ज्यादा उलझाने का ही काम किया। आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में एक लेख छिपा है, जिसमें कहा गया है कि भाजपा कार्यकर्ता चुनाव के दौरान अति आत्मविश्वास में दिख रहे थे। यही वजह है कि भाजपा का परिणाम बहुत निराशाजनक था। कार्यकर्ता जनता से कट गए थे। वह उनकी ना सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के भरोसे ही बैठे थे। आर एस एस क्या पूर्व की तरह फिर नए विकल्पो पर विचार कर रही है। सत्ता में पदस्थ शीर्ष नेताओं की जिम्मेदारी बनती है की वह इस टकराव के जल्द से जल्द दूर कर पुनः उसी मजबूती से देश निर्माण में लगाना होगा क्युकी जिस तरह से बीजेपी कुछ बूथों पर हारी है उससे साफ संदेश है की वे एक है और हम बिखर गए है।

Back to top button