भोपाल: प्रदेश में सभी पार्टियां कर रही जातिवाद फैलोन का काम – अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण

डे नाईट न्यूज़  जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव में अपना आधार मजबूत करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। हाल ही में प्रदेश में अनेक जातिवादी रैलियां हुईं हैं। पहले करणी सेना कीरैली भोपाल में हुई जिसमें आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग की गई। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जनजातीय सुरक्षा मंच ने डीलिस्टिंग को लेकर बड़ी रैली की। इस रैली में मांग की गई कि धर्मांतरण के बाद ईसाई और मुस्लिम हुए आदिवासी को आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

ये रैथ्लयां हो ही रही थी कि भीम आर्मी ने भोपाल में एक बड़ी रैली की और अपनी पांच सूत्रीय मांग रखी। इन मांगों में प्रमोशन में आरक्षण सहित अनेक तरह की मांगे हैं। आदिवासी संगठन जयस भी मालवा निमाड़ के विभिन्न अंचलों में रैलियां निकाल रहा है। कांग्रेस और भाजपा की ओर से पिछड़ा वर्ग रैलियां और दलितों को लुभाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपक्रम चल रहे हैं। जाहिर है राजनीतिक लाभ के लिए जातिवाद फैलाने का काम प्रदेश की सभी पार्टियां कर रही हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

मध्यप्रदेश शांति का द्वीप कहलाता है। यहां आमतौर पर जातिवाद नहीं चलता। प्रदेश में केवल विंध्य और ग्वालियर चंबल ही ऐसा क्षेत्र है जहां थोड़ा बहुत जातिवाद है। इसका कारण यह है कि यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश से लगा हुआ है। अन्यथा पूरे प्रदेश में कहीं भी जातिवाद नहीं है। ऐसे प्रदेश में अपने राजनतिक स्वार्थ के लिए जातिवाद का जहर घोलना अनुचित है। इससे राजनीतिक दलों को बचना चाहिए। इस संबंध में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे थे। इसलिए उन्होंने कभी भी चुनावी राजनीति में दिलचस्पी नहीं ली, लेकिन कार्यकर्ताओं को पार्अी के आग्रह परएक बार वे कन्नौज लोकसभा का चुनाव लड़े।

इस लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों की संख्या निर्णायक है। दीनदयाल जी के चुनावी रणनीतिकारों ने उन्हें सुझाव दिया कि वे ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करें और खुद को ब्राह्मण नेता के रूप में प्रस्तुत करें। दीनदयाल उपाध्याय ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उन्होंने चुनाव हारना मंजूर किया लेकिन जातिवादी राजनीति से खुद को दूर रखा। ऐसे अनेक उदाहरण किए जा सकते हैं। समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस हमेशा ऐसे चुनाव क्षेत्र से लड़े जहां ईसाई मतदाताओं की संख्या एक फीसदी भी नहीं थी, लेकिन लोगों ने उन्हें जातिवाद और धर्म से ऊपर उठकर वोट दिया।

जॉर्ज फर्नांडीस मुंबई, मुजफ्फरपुर और नालंदा से छह बार लोकसभा के लिए चुने गए। इसी तरह मधु लिमये भी मराठी ब्राह्मण थे, लेकिन वे बिहार से चुनाव लड़ते थे और जीतते थे। माना जाता है कि आमतौर पर शहरी क्षेत्र में जातिवाद नहीं होता। जातिवाद का भारत में अधिकतर प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र में ही है। मध्यप्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में बिल्कुल भी जातिवाद नहीं है। इसलिए जातिवाद के आधार पर राजनीति करने वाले दलों को इस संबंध में आत्ममंथन करना चाहिए। जातिवाद का जहर समाज को नुकसान पहुंचाता है। इससे विद्वेष की भावना उापजती है और समाज में तनाव बढ़ता है। मप्र तेजी से तरक्की करता राज्य है। इसलिए राजनीतिक दलों को मुद्दों और जनता की बुनियादी समस्याओं के आधार पर राजनीति करनी चाहिए।

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