हमारे सबके भीतर असीम आनंद विद्यमान है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

हम सब आनंद की संतान है, आनंद हमारा जन्मजात अधिकार है एवं हम आनंद स्वरूप हैं-स्वामी जी

सोमवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि यद्यपि शास्त्र में कहा जाता है एवं हम भी जानते हैं कि हमारे भीतर अनंत आनंद के स्रोत सदैव विद्यमान है तथापि हमारे जीवन में दुःख ही अनुभव होता है।
जब एक दिन भक्त चूड़ामणि गिरीशचंद्र घोष शराब पीकर दक्षिणेश्वर में श्री रामकृष्ण के पास पहुंचे थे एवं पवित्रता के लिए प्रार्थना किया था तब श्री रामकृष्ण ने उनको बोला – श्रीरामकृष्णवचनामृत (2:121:2) “तुम पवित्र तो हो ही। तुममें इतनी भक्ति और विश्वास जो है! तुम तो आनंद में हो न?” गिरीशचंद्र घोष ने उत्तर दिया, “जी नहीं, मन खराब रहता है – बड़ी अशांति रहती है, इसलिए तो शराब पी और खूब पी।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा हमारा चरम दुर्भाग्य है कि भीतर में आनंद की खान रहते हुए भी भक्तगण अपना दुःख सहन करने में असमर्थ होकर शराब पीते हैं, नशा करते हैं खुदकुशी भी कर लेते हैं। हमें सदैव याद रखना चाहिए कि हम सब आनंद की संतान है एवं आनंद ही हमारे जन्मजात अधिकार है एवं हम आनंद स्वरूप हैं।
सिद्ध साधक कमलाकांत चक्रवर्ती का एक संगीत उद्धृत करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा – एक भक्त कहते हैं, “जिनकी मां आनंदमयी है, जगत्जननी है वो कैसे निरानंद में रह सकते हैं? इहलोक में तथा परलोक में मां उनको अवश्य आनंद में रखेंगी।” इस संगीत में आगे है – भक्त प्रार्थना कर रहे हैं, “हे सदानंदमयी तारा! आप शिव का मनोहरण करते हैं, आपके चरणों में मेरी यही विनती है कि मेरा मन सदैव आपके चरणों में लिप्त हो सके।”
दूसरा एक रवींद्र संगीत उद्धृत करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा, “इस सृष्टि में सदैव आनंद धारा बह रही है एवं कितने अमृत रस चारों ओर भरपूर होकर अनंत आकाश की ओर जा रहे हैं। जिसको पीते हुए सूर्य-चंद्र सदैव अक्षय ज्योति से भरपूर रहकर अपना किरण विकिरण करते है। भक्तगण को प्रश्न किया जाता है आप क्यों अपना छोटा सा स्वार्थ लेकर अपने मन के कोने में विलाप कर रहे हो? चारों ओर आंख खोलकर एवं हृदय को विस्तार करके देखो अपने स्वार्थ की छोटी से दुःख भूलकर अपने जीवन में बहमान प्रेम को भर लो और शून्य जीवन बराबर के लिए पूर्ण करो।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा अगर हम लोग अपने अंतर्निहित आनंद सदैव याद कर सकें तब हमारे जीवन में कभी दुःख का लेश नहीं रहेगा। इस विश्वास के साथ अगर हम ईश्वर के चरणों में सदैव प्रार्थना करते रहे तब अवश्य उनकी कृपा से हम उनको इस जीवन में ही प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सफल और सार्थक करने में समर्थ होंगे।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
रामकृष्ण मठ लखनऊ।

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