गुरु सदैव शिष्य के साथ विराजमान रहते हैं – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

गुरु और शिष्य का संपर्क चिरंतन है-स्वामी जी

बुधवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि गुरु और शिष्य का संपर्क चिरंतन है एवं इष्ट ही गुरु रूप से शिष्य के पास पहुंचकर सदैव उनके साथ रहते हुए उनको धीरे-धीरे इष्ट के नजदीक पहुंचा देते हैं एवं इष्ट को चिह्नित करने के उपरांत इष्ट में ही विलीन हो जाते हैं।
श्रीरामकृष्णवचनामृत (2:121:2) में कहा गया है, “गुरु का सिर और शिष्य के पैर।” श्री रामकृष्ण के करीब उपस्थित होते हुए गिरीशचंद्र घोष ने व्याख्यान किया, “गुरु जब बाप के जैसे शिष्य को कंधे पर लेकर चलते हैं तब शिष्य का पैर गुरु के सिर की ओर लटकता है।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने इसका व्याख्यान करते हुए कहा कि शिष्य को समझना चाहिए कि गुरु करुणा के सागर होते हुए सदैव शिष्य की रक्षा करने के लिए साथ-साथ रहते हैं एवं आखिर में इष्ट के साथ विलीन हो जाते हैं। यद्यपि गुरु दिखाई नहीं पड़ते हैं तथापि यह ही वास्तव सत्य है एवं इसको समझाने के लिए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने एक कहानी उल्लेख किया – एक व्यक्ति अत्यंत भक्त थे एवं भक्ति सहकार ईश्वर को पुकारते थे तथा उनका दिया हुआ कर्म श्रद्धानुसार किया करते थे लेकिन दुर्भाग्यवशता उनकी इतनी प्रार्थना की बावजूद कभी इष्ट दर्शन नहीं हुआ, इस कारण वह बहुत दु:खी रहते थे एवं अभियान करके सोचते थे कि भगवान उनको भूल गए। जब उनका देहांत हुआ तब वह आश्चर्य होकर देखा कि उनका इष्ट उनके सामने खड़े है। तब उन्होंने कहा, “मैंने जीवन भर आपको पुकारा था लेकिन आप कभी नहीं आए थे और अभी मौत के बाद आने से क्या फायदा।” तब उनके इष्ट ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं तो सदैव तुम्हारे साथ विराजमान था।” जब उस व्यक्ति ने विश्वास नहीं किया तब ईश्वर ने उनसे कहा, “तुम वापस चले जाओ और जाकर देखो तुम्हारा जीवन कैसा बीता और वापस आकर वो मुझे बताओ।” वह व्यक्ति वापस चले गए और आश्चर्य होकर देखा कि बराबर दो जोड़ी पैर की छाप दिखाई पड़ रही है तब वह व्यक्ति वापस आ गया और कहा, “जी हां! मैंने देखा मेरे पैर के साथ और एक जोड़ी पैर भी है लेकिन बराबर नहीं है। अर्थात मेरा जब प्रतिकूल समय आया था तब आप मुझे छोड़कर चले गए थे और इसलिए एक जोड़ी पैर का छाप दिखाई पड़ा।” तब गुरु रूपी इष्ट ने कहा, “नहीं, उस समय में उस पैर का छाप मेरा ही है। जब तुम्हारा बुरा समय आया था तब तुम चलने में असमर्थ हो जाते थे और उस समय तुम्हें पकड़कर अपने सिर में मैं बैठा लेता था।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा अतएव हमें सदैव याद रखना चाहिए कि जीवन में अगर कोई प्रतिकूल समय आता है उस समय भगवान सक्रिय रूप से हमारी मदद करने के लिए योगदान करते हैं एवं हमारी प्रतिकूल अवस्था को पार कर देते हैं। गुरु के प्रति जब हमारा ऐसा अपनापन रहेगा तभी हम गुरु कृपा हम उपलब्ध करेंगे एवं आध्यात्मिक जीवन को सफल करते हुए इस जीवन में ही इष्ट का दर्शन करके जीवन सफल और सार्थक करने में समर्थ होंगे।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
रामकृष्ण मठ लखनऊ।

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