आधुनिक भारत के राष्ट्र नायक व संत स्वामी विवेकानन्द जी की 162वीं (6-दिवसीय) जयंती बड़े ही धार्मिक माहौल में पारम्परिक एवं पूर्ण रीति रिवाजो के साथ विधिवत अनुष्ठानिक प्रक्रिया से रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में दूर-दराज से आये भक्तगणों की भागीदारी एवं उत्साह व त्यौहारिक माहौल के बीच दिन मंगलवार दिनांक 21 से रविवार 26 जनवरी, 2025 तक मनाया जा रहा है तथा समस्त कार्यक्रम हमारे यूट्यूब चैनेल : ‘रामकृष्ण मठ लखनऊ’ के माध्यम से सीधा प्रसारण भी किया जा रहा है।
श्री रामकृष्ण मन्दिर के वृहद परिसर में कार्यक्रम की शुरूआत सुबह 5ः00 बजे शंख निनाद व मगंल आरती के बाद सुप्रभातम एवं प्रार्थना हुई। भक्तगणों की सतत् भागीदारी के साथ सूर्योदय से सूर्यास्त तक निरन्तर जप-यज्ञ, (बारी-बारी से इच्छुक भक्तगणों द्वारा भगवान का निरन्तर नाम जपन) का आयोजन प्रत्यक्ष रूप से रामकृष्ण मठ के पुराने मंन्दिर में तथा परोक्ष रूप से इन्टरनेट के माध्यम से सम्मिलित होकर हुआ।
तत्पश्चात, सुबह 6ः50 बजे स्वामी विवेकानन्द की छवि को विशेष नाश्ता दिया गया। ’श्रीरामकृष्ण के चिरसखा-स्वामी विवेकानन्द’ विषय पर एक विशेष सत् प्रसंग (ऑनलाइन) देते हुए रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथनन्दजी महाराज ने कहा कि नर नारायण को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णू (श्रीमद्भागवतम) का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु का अवतार पृथ्वी पर नर-नारायण नामक जुड़वाँ भाई के रूप में हुआ। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र धर्म की पत्नी रूचि के गर्भ से श्री हरि ने नर और नारायण नाम के दो महान तपस्वियों के रूप में धरती पर जन्म लिया। इनके जन्म का कारण ही संसार में सुख और शांति का विस्तार करना था। नर एक मानव आत्मा है जो नारायण का स्थायी प्रतिरूप है, जो ईश्वर है।
उनके अवतार का उद्देश्य पृथ्वी पर सत्य, उदारता, न्याय और धर्म के अन्य सभी गुणों को संरक्षित करना था। हिंदुओं का मानना है कि जुड़वाँ बद्रीनाथ में रहते हैं, वह स्थान जहाँ नर-नारायण के अधिकांश मंदिर स्थित हैं।
द्वापर युग में यानि महाभारत काल में श्री कृष्ण को पांडवो में सबसे प्रिय अर्जुन ही थे, लेकिन क्यों? तो इसका उत्तर नर नारायण से ही जुड़ा हुआ है। दरअसल माना जाता है कि पांडवो के घर नर ने ही अर्जुन के रूप में जन्म लिया था जबकि कृष्ण तो नारायण के ही अवतार थे। माना जाता है कि इसी कारण कृष्ण के परम सखा, शिष्य, भाई आदि अर्जुन ही थे।
उसके बाद विशेष पूजा, चण्डी पाठ, भक्तिगीत और मंत्रोच्चार किया गया। कठोपनिषद से पाठ स्वामी मुक्तिनाथानंद जी द्वारा किया गया, इसके बाद हवन, पुष्पांजलि, भजन और भोगराती का आयोजन किया गया। जिसमें पूजा में इकट्ठा हुए भक्तगणों ने हवन एवं भारी मात्रा में पुष्पांजली, किया। इस दौरान लगभग 2000 भक्तगणों के बीच पके हुए प्रसाद का वितरण मंदिर के पूर्व प्रांगण में हुआ।
शाम को संध्या आरती के पश्चात उपस्थित भक्तगणों व आम जनमानस के लिए एक जनसभा का आयोजन हुआ जिसमें अद्वैत आश्रम, मायावती, प्रबुद्ध भारत के सम्पादक स्वामी दिव्यकृपानन्द ने ’’स्वामी विवेकानन्द एक अद्वितीय पथप्रदर्शक’’ विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द को भारत के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक दार्शनिक, शिक्षाविद् और विचारक के रूप में जाना जाता है। श्री रामकृष्ण उनके आध्यात्मिक गुरु थे, और वे रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक हैं। उन्हें उनके निडर साहस के लिए एक आदर्श माना जाता है। युवाओं के प्रति उनकी सकारात्मक सोच और कई सामाजिक समस्याओं के प्रति उनके व्यापक दृष्टिकोण, और वेदांत दर्शन पर अनगिनत व्याख्यान और प्रवचनों ने उन्हें जल्द ही सभी के बीच प्रसिद्ध कर दिया। विवेकानन्द का मानना था कि शिक्षा केवल जानकारी नहीं है, यह हमारे दैनिक जीवन को जीने का सहारा है। यह कहा जा सकता है कि उन्हें रामकृष्ण मिशन द्वारा गरीब लोगों के उत्थान के माध्यम से हमारे राष्ट्र का विकास करना था। वे मानवता के प्रेमी थे; उन्होंने वेदांत दर्शन के माध्यम से आध्यात्मिक और वास्तविक पर शांति और मानवीय भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास किया। विवेकानन्द ने महसूस किया कि भारतीय युवाओं में बहुत सारी संभावनाएँ हैं, वे समाज को बदल सकते हैं। उन्होंने विशेष रूप से युवा चेतना के लिए काम किया। वे भारतीय पारंपरिक संस्कृति का सम्मान करते हैं, और इसी तरह वे तार्किक सोच के बारे में बात करते हैं। यहाँ शोधकर्ता यह जानने की कोशिश करते हैं कि विवेकानन्द ने आधुनिक और स्वतंत्र भारत बनाने में किस तरह अपना योगदान दिया। उस समय विवेकानंद के भारतीय मूल्य और पश्चिमी मूल्य के प्रति विचारों ने एक नई मूल्य अवधारणा को जन्म दिया। आजकल आधुनिक समय में भारत खुद को फिर से खोज रहा है। स्वामी विवेकानन्द ने ओजस्वी विचारों से सम्पूर्ण विश्व को भारत के प्रति आकर्षित किया।