धार्मिक स्थल में भगदड़ रोकने के उपाय तलाशने होंगेऋतुपर्ण दवे

भारत में धार्मिंक आयोजनों की भीड़ में भगदड़ आम हो चुकी है। ऐसी घटनाओं में मौतें होना न नई हैं, और न ही अब हैरान करने वाली। लेकिन लगता है कि गंभीरता को जानते-समझते हुए भी सीख नहीं लेने से इन मौतों पर विराम तो दूर सोचना भी बेमानी लगता है।
दो-चार दिन बाद बात आई-गई हो जाती है। बीते दिनों वृंदावन में ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में रंगभरी एकादशी की रंगीली होली की शुरु आत के एक दिन पहले भीड़ ऐसी बेकाबू हुई कि एक श्रद्धालु ने दम तोड़ दिया जबकि एक की तबीयत बिगड़ गई। भारी भीड़ के दबाव में फंसी महिलाओं और बच्चों की चीखें निकलती रहीं और पुलिस की मुस्तैदी इस बात पर ज्यादा थी कि अति विशिष्टजनों की सेवा में कोई खलल न पड़े।
ऐसी ही एक घटना अगस्त, 2022 में घटी जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा-वृंदावन में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी और बांके बिहारी मंदिर में रात 2 बजे मंगला आरती के दौरान दम घुटने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई, 9 घायल हो गए। आरोप लगे कि भीड़ नियंत्रित कराने वाले अपने परिजनों को वीआईपी दर्शन कराने में जुटे थे तो कई वीडियो बनाने में मशगूल रहे। परिसर में श्रद्धालु क्षमता 800 लोगों की है, जबकि वहां 25-30 हजार श्रद्धालु मौजूद थे। धार्मिंक आयोजनों में भारी भीड़ जुटना नया नहीं है।
लेकिन हादसों के बाद समझ आता है कि सुरक्षा कैसी होती है? वैज्ञानिकों ने 1900 के बाद से विश्व में भगदड़ या भीड़भाड़ की घटनाओं का एक डेटाबेस तैयार किया ताकि ऐसी मौतों को रोकने के उपायों को खोजा जा सके। इसमें 1900-2019 के बीच ऐसी 281 घटनाएं शामिल की जिनमें या तो कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई या दस से ज्यादा लोग घायल हुए। यही आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में भारत और पश्चिमी अफ्रीका ऐसी दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र हैं। वक्त के साथ बढ़ती तकनीक के बावजूद तीन दशकों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं क्योंकि घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
भारत में बीते कुछ वर्षो के दौरान मंदिरों और अन्य हिन्दू धार्मिंक कार्यक्रमों में भगदड़ में सैकड़ों जानें गई। 25 जनवरी, 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा में 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचल कर मौत हो गई, सैकड़ों घायल हुए। नारियल तोडऩे से सीढिय़ों में फिसलन से यह भगदड़ हुई। 3 अगस्त, 2008 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के नैना देवी मंदिर में भू-स्खलन की अफवाह से मची भगदड़ में 162 जान चली गई, 47 लोग घायल हुए।
30 सितम्बर, 2008 को राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह से मची भगदड़ में 250 लोगों की मौत हुई और 60 से ज्यादा घायल हुए। 4 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में 63 लोगों की मौत हुई जो वहां कपड़ा और भोजन लेने आए थे।13 अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक घायल हुए।
ऐसे और न जाने कितने हादसों ने सैकड़ों जान ली हैं। दुर्भाग्यवश कभी भगदड़ में फंस जाएं तो थोड़ी सतर्कता बरत कर खुद को बचाया जा सकता है। अपनी ताकत बेवजह भीड़ के खिलाफ दूसरों को धकेलने में न लगाएं। चीखने-चिल्लाने या शोर मचा कर भी ताकत जाया न करें। कोशिश करें कि पैर फैला कर रखें ताकि धक्का लगने पर संतुलन बना रहे। धैर्यपूर्वक गहरी सांसें लेकर शांत रहें। बजाय विपरीत दिशा में जाने के हमेशा भीड़ के साथ चलें जिससे बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
हाथों को अपनी छाती के सामने किसी बॉक्सर की तरह अड़ा रखें ताकि सीना सुरक्षित रहे जिससे आप खुद को सुरक्षित रख सकेंगे। भीड़ में गिरने पर उठ नही पा रहे हों तो तिरछे हो जाएं, दोनों पैरों को सीने से चिपकाएं, सिर पर हाथ रख कर खुद को बचाने की कोशिश करें ताकि सीना, पसली और सिर बचा रहे। दीवारों और बैरिकेडिंग से भी दूर रहें। ज्यादा से ज्यादा कोशिश करें कि खुली जगह में जल्द से जल्द पहुंच जाएं।
यह कहना कि एकाएक भीड़ आ गई गलत है। आजकल धार्मिंक स्थलों के पूरे क्षेत्र, गलियारों, चौक, चौराहों में स्थानीय प्रशासन, पुलिस या निजी सुरक्षा के लिए  लगे सीसीटीवी कैमरों के अलावा सैटेलाइट से भी भीड़भाड़ की जानकारी लेना संभव है। हर पल पता होता है कि कहां से कितनी भीड़ आ रही है। यही प्रबंधन तो करना है ठीक वैसे, जैसे ट्रैफिक का करते हैं। इसके लिए जगह-जगह प्रतीक्षालय बनें, उनमें जलपान, प्रसाधन और आराम तथा छायादार सुविधा हों।
बड़े-बड़े स्क्रीन हों जिन पर गंतव्य का लाइव प्रसारण होता रहे ताकि श्रद्धालु खुद मानसिक रूप से आगे जाने से पहले भीड़ के अनुरूप तैयार हों या कुछ पल सुकून से और प्रतीक्षा कर लें। प्राय: भीड़भाड़ वाले धार्मिंक स्थल आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं। हादसों से सीख कर ऐसे तमाम धार्मिंक स्थलों के प्रबंधक और स्थानीय तंत्र भी खुद को बदलें। इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक पद्धतियों और क्राउड मैनेजमेंट से स्थिति काफी हद तक बदल सकती है ताकि भीड़, भगदड़ से होने वाली मौतों पर काबू पाया जा सके।

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