एक ही ईश्वर माया के आश्रय से बहुरूप होते हैं : स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

संपूर्ण क्रियाएं प्रकृति और प्रकृति के कार्यों द्वारा ही होती है-स्वामी जी

रविवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि यद्यपि ईश्वर एक ही है लेकिन वह माया का आश्रय लेकर हमारे सामने बहुरूप से विराजमान है।
यह बात न केवल शास्त्र में कहा जाता है भक्तगण भी उपलब्धि करते हैं, जैसे कि अपना श्राप उन्मोचन होने के बाद अहिल्या श्री रामचंद्र जी की स्तुति में व्यक्त किया था।

अध्यात्म रामायण (1:5:54)

कार्यकारणकर्तृत्वफलसाधनभेदत:।

एको विभासि राम त्वं मायया बहुरुपया।।

अर्थात “हे राम! आप बहु -रूपमयी माया से कार्य, कारण, कर्तृत्व, फल और साधन के भेद से अनेक रूप से विभासित हो रहे हैं।”
स्वामी जी ने बताया कि कोई भी कार्य करने के लिए पांच कारण होता है जो कि श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया,

श्रीमद्भगवद्गीता (18:14)

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।

विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पंचमम्।।

इस विषय में अर्थात कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण एवं नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाएं और वैसे ही पांचवां हेतु दैव है।
स्वामी जी ने कहा कि अधिष्ठान का अर्थ शरीर और जिस देश में वह शरीर स्थित है वह दोनों ही अधिष्ठान है। संपूर्ण क्रियाएं प्रकृति और प्रकृति के कार्यों द्वारा ही होती है। वे क्रियाएं समष्टि हो या व्यष्टि हो परंतु उन क्रियाओं का कर्ता स्वयं नहीं है केवल अहंकार से मोहित अंतःकरण वाला अर्थात जिसको चेतन और जड़ का ज्ञान नहीं है ऐसा अविवेकी पुरुष ही जब प्रकृति से होने वाली क्रियाओं को अपना मान लेता है तब वो कर्ता बन जाता है। ऐसा कर्ता ही कर्म की सिद्धि का हेतु बनता है। अहंकार अपने को कर्ता समझकर अज्ञान में रहता है।
स्वामी जी ने कहा कि यह पांच प्रकार का हेतु होने पर भी जो विभिन्न प्रकार का कार्य हो रहा है इन सबका विभिन्न रूप के भीतर एकमात्र परमात्मा ही विराजमान है एवं इतने विभिन्न रूप रहते हुए भी वो एक ही है।

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया अगर हम अपने ईष्ट को जगत में विभिन्न प्रकार कार्य के भीतर चारों ओर दर्शन कर सकें तब हमारा जीवन भी ईष्ट से विच्छिन्न नहीं होगा एवं प्रत्येक मुहूर्त में हम ईष्ट दर्शन करते हुए आनंद में रहेंगे एवं जीवन सफल हो जाएगा।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
श्रीरामकृष्ण मठ लखनऊ।

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