श्रीरामजन्मभूमि संघर्ष का इतिहास पर प्रकाश: डॉ सुनील कुमार मिश्रा।


किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व और अस्मिता, स्वत्व और स्वाभिमान उस देश के श्रद्धा व आस्था केन्द्रों, महापुरुषों के स्मृतिस्थलों तथा सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन पर निर्भर करता है। यह इतिहास का एक कड़वा सच है कि बर्बर विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारे हजारों श्रद्धा, पुण्य और प्रेरणा केन्द्रों को ध्वस्त कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत करने का दुस्साहस किया था। उन्होंने हिन्दुस्थान में हजारों मंदिरों को तोड़ा और फिर अपने वर्चस्व का दंभ दिखाने के लिये उन्हीं मंदिरों के स्थान पर, उन्हीं मंदिरों के मलवे से मस्जिदें खड़ी कर दीं। देश के कोने-कोने में ऐसे अनगिनत स्थान हैं । काशी विश्वनाथ मन्दिर वाराणसी, श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, श्री राम जन्मभूमि अयोध्या तथा गुजरात का सोमनाथ का मंदिर भारत की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक प्रवाहधारा के मुख्य स्त्रोत रहे हैं। अतः उनके ध्वंस का दंश हिन्दू समाज को हमेशा सालता रहा और इसीलिये उनकी पुनर्स्थापना एवं पुनर्प्रतिष्ठा की मांग और प्रयास निरंतर जारी रहे। विशेष रूप से श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिये तो अब तक हुए 76 संघर्षों में साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों ने अपना बलिदान दिया। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने श्री रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर उसके बहुत से प्रतीक चिन्हों, स्तंभों, मूर्तियों आदि को क्षतिग्रस्त करके उनका मलवे के रूप में प्रयोग करते हुए उसी स्थान पर एक मस्जिदनुमा ढ़ांचे का निर्माण कराया। यदि ऐसा है तो इस प्रश्न को मंदिर-मस्जिद विवाद अथवा हिन्दू-मुस्लिम समस्या की चौखट से बाहर निकालकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते गुलामी के प्रतीक चिन्हों को मिटाने और राष्ट्र के स्वत्व व स्वाभिमान जगाने तथा अस्मिता और पहचान को प्रकट करने वाले स्मारक की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जाना चाहिये। ऐसा होना सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देशों व समाजों में होता आया है, और यह स्वाभाविक भी है।
भारत के लिये राम केवल पूजा के देव नहीं हैं। वे राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय गौरव, भारतभक्ति और मर्यादा के मानदंडों के अनुसार जीवन-व्यवहार करने वाले राष्ट्रपुरुष हैं। ऐसी स्थिति में अपमान के कलंक को धोने, गुलामी के चिन्हों को हटाने, सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति पाने, आस्था-श्रद्धा व मानबिन्दुओं की रक्षा करने, भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने, राष्ट्र की चेतना को जगाने और राष्ट्रीय पहचान को प्रकट करने के प्रतीक के रूप में श्री रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाया जाना अत्यंत स्वाभाविक है। राम।
देश की आस्था के प्रतीक। इतिहास के धीरोदात्त नायक। लोकजीवन में शील और मर्यादा को स्थापित कर बने पुरुषोत्तम । भारत के राष्ट्रपुरुष राम। राम राज्य, अर्थात शील का अनुगामी राज्य। लोककल्याण के लिये कृतसंकल्प। भारत के इतिहास में शासन-विधान का सर्वोच्च मापदंड। इसीलिये देश के संविधान की प्रथम प्रति पर पुष्पक विमान में विराजमान माता जानकी और श्री लक्ष्मण सहित अयोध्यानरेश श्री राम का रेखाचित्र अंकित किया गया। इसके आगे का इतिहास अगले अंक में भेजेंगे , डॉ सुनील कुमार मिश्रा

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