पूरा मंत्र दोहराने से ही मंत्र कार्यकारी होता है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ

बीज मंत्र के भीतर ही मंत्र की आध्यात्मिक शक्ति निहित रहती है- स्वामी जी

गुरु के प्रति भक्ति भी परमावश्यक है -स्वामी जी

मंगलवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि सद्गुरु से जो मंत्र प्राप्त होता है वह संपूर्ण रूप से दोहराने से ही कार्यकारी होता है, उसमें कुछ संशोधन, संकोचन अथवा सम्प्रसारण नहीं होना चाहिए क्योंकि मंत्र के भीतर ही मंत्र शक्ति सुप्त रूप से निहित रहती है।
शुद्ध रूप से मंत्र उच्चारण नहीं करने से क्या होता है, इसके बारे में श्री मां सारदा देवी ने कहा कि एक भक्त को ‘रुक्मिणी नाथाय’ मंत्र मिला था लेकिन वह जल्दी-जल्दी करने के कारण उसको रुकू- रुकू उच्चारण करती थी। जब कुछ दिन बाद उनके गुरु को पता चला तब उनके गुरु जी उनको संशोधन कर दिया कि ऐसा करने से तुम्हें सिद्धि लाभ नहीं होगा।
वैसे ही एक अन्य दृष्टांत उद्धृत करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया एक महिला भक्त के श्वसुर का नाम था ‘हरे राम’। महिलाओं को श्रद्धा ज्ञापन करने के कारण बुजुर्ग एवं श्वसुर का नाम नहीं लेना चाहिए। उनको दीक्षा के उपरांत मंत्र मिला था, ‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे’ ‘हरे राम, हरे राम, राम-राम, हरे-हरे’ लेकिन यद्यपि उनके श्वसुर का नाम ‘हरे-राम’ था तो उन्होंने उच्चारण शुरू किया – फरे कृष्ण, फरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, फरे-फरे’
‘फरे फाम,फरे फाम,फाम- फाम, फरे-फरे’। लेकिन दीर्घकाल यह मंत्र उच्चारण करने के बाद कोई आशानुरूप फल नहीं होने पर जब वह उनके गुरु के पास यह निवेदन किया तब उन्होंने संशोधन कर दिया कि भगवान का नाम उच्चारण करने से कोई हानि नहीं होगी, उनको सही मंत्र उच्चारण करना पड़ेगा।
मंत्र का एक अंश होता है जिसको बीज कहा जाता है वो बीज में ही सगुण साकार ईष्ट देव का आध्यात्मिक स्वरूप सुप्त रूप से विराजमान रहता है। वो बीज दोहराने से वह शक्ति धीरे-धीरे प्रकट हो जाती है। लेकिन वो बीज सजीव होना चाहिए जैसे कोई भी पेड़ का बीज अगर ज्वल जाता है तो उसमें और पेड़ नहीं हो सकता है। किसी से भी वो बीज प्राप्त होकर दोहराने से काम नहीं होगा। वो बीज के भीतर आध्यात्मिक शक्ति सजीव रहना चाहिए जो कि सद्गुरु से ही प्राप्त होती है। अगर किसी को बीज सजीव नहीं मिला अर्थात सद्गुरु से सही मंत्र नहीं मिला तब उसका क्या उपाय होगा, इसके उत्तर में श्री रामकृष्ण कहते हैं, ‘गुरु क्यों न हो, गुरु के प्रति भक्ति बहुत जरूरी है। अगर कोई अपने गुरु के प्रति अविचल निष्ठा और भक्ति रखते हुए उनका दिया हुआ मंत्र भक्ति भाव से दोहराते रहे तब अगर उसमें कोई गलतियां हो रही है तो वो परमात्मा स्वयं समय पर संशोधन कर देते हैं।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा हमें सर्वदा याद रखना चाहिए हम लोग अनाथ नहीं है, स्वयं ईश्वर सदैव हमारे साथ हैं एवं हम उनकी निगाह में है। हमारे प्रत्येक मुहूर्त उनसे परिचालित होता रहता हैं अगर कोई सरल विश्वास में आंतरिक होकर ईश्वर को चाहते हैं तो ईश्वर स्वयं उनको प्राप्ति के लिए यथोचित बंदोबस्त कर देते हैं एवं सही समय पर सही गुरु को प्राप्त करवा देते हैं। लेकिन भक्तगण को गुरु का दिया हुआ मंत्र सांगोपांग सही ढंग से, संपूर्ण भाव से एवं नियमित रूप से दोहराना चाहिए अर्थात सुबह-शाम एक निर्दिष्ट समय पर बैठकर गुरु प्राप्त मंत्र दोहराना चाहिए तभी गुरु कृपा से सिद्धि प्राप्त होती है।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया इस प्रकार अगर हम ईश्वर के ऊपर निर्भरशील होकर ईश्वर का कोई मंत्र नियमित रूप से श्रद्धा भक्ति सहकार दोहराते रहे तब ईश्वर के नाम में जो पावन शक्ति रहती है उससे अवश्य हमें शुद्धाभक्ति प्राप्त होगी एवं हम इस जीवन में ही ईश्वर का दर्शन करते हुए जीवन सफल हो जाएगा।

स्वामी मुक्तिनाथानंद

अध्यक्ष
रामकृष्ण मठ लखनऊ

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