तर्क के माध्यम से ईश्वर लाभ नहीं होता है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

धर्म तर्क का विषय नहीं, अनुभूति का विषय है-स्वामी जी

मंगलवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि धर्म कोई तर्क का विषय नहीं है, धर्म अनुभूति का विषय है। स्वामी विवेकानंद ने कहा, “अनुभूति ही धर्म है।”

स्वामी जी ने बताया कि साधारणतया धर्म को कोई मतवाद माना जाता है एवं हम समझते हैं कि तर्क-वितर्क करके अपना मतवाद प्रतिष्ठित करने से ही धर्म सबके ग्रहण योग्य होगा। लेकिन हमारी परिभाषा में तर्क के माध्यम से ईश्वर लाभ करना असंभव है।
उन्होंने बताया कि यह बात श्री रामकृष्ण अपने अंतरंग भक्तों को समझाया। एक दिन श्री रामकृष्ण अपने अंतरंग भक्तों के बीच सत् प्रसंग करते हुए कहा, “कटोवा के वैष्णव तर्क कर रहे थे। श्री रामकृष्ण उनसे कह रहे हैं – ‘तुम कलकलाना छोड़ो।” श्री रामकृष्ण ने ऐसा कहा कारण, जब तक हम तर्क करते रहेंगे तब तक हम ईश्वर से बहुत दूर रह जाएंगे। हमारे वेदांत शास्त्र में भी यही बात कही गयी है – कठोपनिषद (1:2:9)

नैषा तर्केण मतिरापनेया प्रोक्तान्येनैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ।

यां त्वमाप: सत्यधृतिर्बतासि त्वांग नो भूयान्नचिकेत: प्रष्टा।।

अर्थात यमराज उनके पास आगत अति मेधावी नचिकेता को कह रहे हैं, “हे प्रियतम! तुम्हारी जो सद्बुद्धि हुई है वो तर्क के द्वारा प्राप्त करना संभव नहीं है। ज्ञानी गुरु के द्वारा उपदिष्ट होने से ही इस प्रकार ईश्वर दर्शन होता है। हे नचिकेता! तुम्हे यथार्थ परमार्थ विषयक ज्ञान लाभ हुआ है, तुम्हारे जैसे उत्तम, जिज्ञासु वरणीय है।”
स्वामी जी ने बताया कि ईश्वर के बारे में सुनने से एवं विचार करने से ही ईश्वर प्राप्ति नहीं होती है। ज्ञानी गुरु से उपदिष्ट होने पर ही ईश्वर प्राप्ति होती है। यह बात कठोपनिषद (1:2:7) में कहा गया है –

श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्य: श्रृण्वन्तोऽपि बहवो यं न विद्यु:।

आश्चर्यों वक्ता कुशलोऽस्य लब्धाश्चर्यो ज्ञाता कुशलानुशिष्ट:।।

अर्थात आत्म संबंधी ज्ञान अनेक व्यक्ति को सुनने का भी अवसर नहीं होता है एवं श्रवण के बावजूद अनेक व्यक्ति को आत्म संबंधी धारणा नहीं होता है। अतएव वो आत्मा का उपदिष्ट अति विरल है एकमात्र निपुण आचार्य द्वारा उपदेश मिलने के बाद ही कोई-कोई भाग्यवान व्यक्ति आत्मज्ञान लाभ करने में सफल होते हैं।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा अतएव हमें यह महापुरुषों की वाणी याद रखते हुए वृथा तर्क में समय बर्बाद करने के परिवर्त ईश्वर के चरणों में आंतरिक प्रार्थना करना चाहिए ताकि उनकी कृपा से हम इस जीवन में ही ईश्वर लाभ करते हुए जीवन धन्य और सफल कर सकें।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
श्री रामकृष्ण मठ लखनऊ।

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