दिल्ली में इस साल दिवाली पर कई सालों बाद फिर से कानूनी रूप से पटाखों की आवाज़ सुनाई दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह संकेत दिया है कि एनसीआर  में “ग्रीन क्रैकर्स” यानी पर्यावरण-अनुकूल पटाखों के इस्तेमाल पर लगी पाबंदी को अस्थायी रूप से हटाया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, लेकिन फिलहाल के लिए ग्रीन पटाखों के सीमित उपयोग की अनुमति दे दी है।

ग्रीन क्रैकर्स दरअसल ऐसे पटाखे हैं जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण फैलाते हैं। इन्हें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की इकाई – नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) ने विकसित किया था। साल 2018 में पहली बार तीन प्रमुख श्रेणियाँ पेश की गईं SWAS (Safe Water Releaser), STAR (Safe Thermite Cracker) और SAFAL (Safe Minimal Aluminium)। इन पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट और सल्फर जैसे हानिकारक तत्वों को हटाया गया है, जिससे धुएं और गैसों के उत्सर्जन में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आती है।

जानकारों के अनुसार, भले ही ये “कम हानिकारक” हों, लेकिन इन्हें पूरी तरह ‘स्वच्छ’ नहीं कहा जा सकता। सीपीसीबी के पूर्व वैज्ञानिक प्रमुख दीपंकर साहा का कहना है कि किसी भी दहन प्रक्रिया से उत्सर्जन पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, बस उसकी मात्रा घटाई जा सकती है।

हालांकि, ग्रीन क्रैकर्स को लेकर कई व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में इनकी प्रमाणिकता जांचने के लिए अभी कोई लैब या टेस्टिंग सुविधा मौजूद नहीं है। CSIR-NEERI और PESO से प्रमाणित कंपनियों को ही इन्हें बनाने की अनुमति दी गई है, लेकिन बाजार में डुप्लिकेट उत्पादों की आशंका बनी हुई है। पैकेट्स पर ग्रीन लोगो और QR कोड अनिवार्य किया गया है, ताकि असली उत्पाद की पहचान की जा सके, लेकिन कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि नकली QR कोड भी बाजार में फैल रहे हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी का कहना है कि भले ही ग्रीन पटाखों से प्रदूषण में 30% तक कमी आती हो, लेकिन दिल्ली जैसे शहर में दिवाली के दौरान वायु गुणवत्ता पहले से ही खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। उन्होंने कहा “जब PM2.5 का स्तर WHO की सीमा से 800 से 1500% तक बढ़ जाता है, तब 30% की कमी का कोई व्यावहारिक असर नहीं होता,। स्थानीय निवासियों के संघ (RWA) के प्रतिनिधि चेतन शर्मा ने भी कहा कि सर्दियों से ठीक पहले इन पटाखों की अनुमति देना “जोखिम भरा” फैसला है, क्योंकि इस मौसम में प्रदूषण का असर पहले से ही चरम पर होता है।

कुल मिलाकर, मौजूद जानकारी के अनुसार, ग्रीन क्रैकर्स पर सुप्रीम कोर्ट का रुख परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है और यह स्पष्ट है कि असली परीक्षा इस दिवाली पर होगी। जब देखा जाएगा कि “कम प्रदूषण” का वादा वास्तव में दिल्ली की हवा में कोई राहत ला पाता है या नहीं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *