भाजपा के सहयोगियों की चिंता

भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगियों की चिंता बढ़ा दी है। वह जिस तरह से एक एक सीट के लिए मोलभाव कर रही है और सभी छोटी पार्टियों को कम सीटों पर समझौता करने के लिए मजबूर कर रही है उससे सहयोगी परेशान हुए हैं। पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल को दो सीटें दीं और साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी व निषाद पार्टी को एक एक सीट देने का फैसला किया तो अब महाराष्ट्र से खबर आ रही है कि भाजपा वहां अजित पवार की असली एनसीपी को सिर्फ चार से पांच सीट देने वाली है।
पहले एनसीपी का दावा 12 सीटों का था। बाद में कहा गया कि आठ सीटें मिलेंगी। फिर जब अमित शाह सीटों के बंटवारे पर बात करने महाराष्ट्र पहुंचे तो कहा गया कि अजित पवार को छह सीटें मिल सकती हैं। लेकिन अब खबर आ रही है कि चार सीटें देने की बात हो रही है।
इसी तरह असली शिव सेना यानी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट को आठ से 10 सीट देने की बात हो रही है। सोचें, शिंदे गुट के पास 13 लोकसभा सांसद हैं। लेकिन भाजपा उनको आठ से 10 सीट का प्रस्ताव दे रही है। खुद भाजपा 32 से 34 सीट लडऩा चाहती है। उसका प्रस्ताव है कि शिंदे गुट के कुछ सांसदों को वह अपने चुनाव चिन्ह पर लड़ा सकती है। जानकार सूत्रों का कहना है कि बिहार में भी भाजपा की छोटी सहयोगी पार्टियां बिलबिला रही हैं क्योंकि किसी को भी एक से ज्यादा सीट नहीं मिलती दिख रही है।
नीतीश कुमार 15 से 16 सीट पर वीटो करके विदेश चले गए। इसका नतीजा है कि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा दोनों को एक एक सीट का प्रस्ताव मिल रहा है और एनडीए का दरवाजा खटखटा रहे मुकेश सहनी को भी एक सीट से ज्यादा देने की संभावना नहीं दिख रही है। लोक जनशक्ति पार्टी को पिछली बार छह सीटें मिली थीं लेकिन इस बार उसे दोनों खेमों को मिला कर पांच सीट दिए जाने पर बातचीत हो रही है।
सो, हर जगह भाजपा की सहयोगी पार्टियों को समझौता करना होगा। लोकसभा सीट के बदले भाजपा उनको राज्यों में कोई पद दे सकती है। विधानसभा की ज्यादा सीट दे सकती है या जहां विधान परिषद है वहां सीट दे सकती है लेकिन लोकसभा सीट पर गुंजाइश कम है।

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