भक्त भगवान की ही प्रतिछवि है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

ईश्वर को गौरवान्वित करने में भक्त स्वयं गौरव अर्जन करते हैं-स्वामी जी

मंगलवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि आध्यात्मिक जीवन में पूजा एक महत्वपूर्ण साधन है एवं पूजा करते हुए भक्त भगवान का ही गौरव प्रतिफलित करते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि पूजा का तात्पर्य व्याख्यान करते हुए भक्तराज प्रह्लाद ने जो कहा था वह श्रीमद्भागवतम् (7:9:11) में उल्लेखित है – प्रहलाद जी ने कहा, ईश्वर पूर्णकाम है, कोई भी उपचार से अगर हम उनकी पूजा करें तो उस उपचार की उनको कोई आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन उस उपचार के माध्यम से हम उनके प्रति जो श्रद्धा, प्रीति, प्रेम एवं आत्मनिवेदन अर्पण करते हैं भगवान वही ग्रहण करके हमें कृतार्थ कर देते हैं। यद्यपि ईश्वर की पूजा में भगवान गौरवान्वित नहीं होते हैं लेकिन पूजा करते हुए भक्त ही स्वयं गौरव अर्जन करते हैं अर्थात ईश्वर को गौरवान्वित करने के प्रयास में भक्ति स्वयं गौरव अर्जन करते हैं।
एक उदाहरण के माध्यम से श्री प्रह्लाद जी ने समझाया – अगर कोई दर्पण के सामने खड़े होकर अपने को सुसज्जित करें तब उस प्रक्रिया के माध्यम से दर्पण में जो उनके प्रतिछवि है वह ही सुसज्जित होती है। भक्त भगवान की प्रतिछवि होने के हेतु भक्त भगवान को सुसज्जित करने के प्रयास में स्वयं ही सुसज्जित हो जाते है अर्थात पूजा के माध्यम से पूजक ही लाभान्वित होते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि पूजा का यह तात्पर्य समझाते हुए श्री रामकृष्ण ने पूजा के माध्यम से ईश्वर को सच्चा भक्ति अर्पण करने के लिए सबको प्रोत्साहित किया एवं स्वयं आंतरिक पूजा करते हुए प्रदर्शन किया कि पूजा में ईश्वर कैसे आसानी से अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। जैसे कोई छोटी संतान जब अपने पिताजी को कुछ उपहार देते हैं तब पिताजी जानते हैं कि यह उन्हीं का ही समान है लेकिन वो संतान प्यार से वह समान प्रदान करते हैं इसलिए पिताजी प्रसन्न होकर वह प्यार मिश्रित उपहार ग्रहण करते हैं एवं संतान को आशीर्वाद देते हैं। वैसे ही भगवान का ही सम्पद हम जब उनको अर्पण करते हैं तब सम्पद
के साथ जो आंतरिक श्रद्धा-भक्ति हम उनको निवेदन करेंगे वही भगवान ग्रहण करते हुए हमें आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया अतएव सामर्थ्य अनुसार पूजा करना चाहिए एवं वह औपचारिक पूजा और मानसिक पूजा के माध्यम से हमारे जीवन को भगवत्मुखी कर लेना चाहिए। अगर ईश्वर को हम आंतरिक प्रार्थना करते रहेंगे तब उनकी कृपा से इस जीवन में ही उनको प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सफल कर लेंगे।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
श्री रामकृष्ण मठ लखनऊ।

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