ईश्वर तुष्ट हो जाने से सब कोई तुष्ट हो जाता है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ।

भगवान की अशेष कृपा से हमारा जीवन भगवत् केंद्रित होते हुए पूर्ण हो जाएगा-स्वामी जी

शनिवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि ईश्वर के बारे में कहा जाता है –

तस्मिन् तुष्टे जगत तुष्टम्।

प्रिनीते प्रियताम जगत्।।

अर्थात अगर ईश्वर तुष्ट होते हैं तो सारा जगत तुष्ट हो जाता है एवं अगर वे संतुष्ट करेंगे तो संपूर्ण जगत संतुष्ट रहेगा।
उन्होंने बताया कि एक उदाहरण देते हुए यह बात श्री रामकृष्ण ने भक्तगणों को समझाया। वनवास काल में जब द्रोपदी के भोजन के उपरांत दुर्वासा मुनि अनेक शिष्य लेकर भीक्षा के लिए उनकी कुटीर में उपस्थित हुए थे तब भीक्षा देने के लिए उनका अक्षय पत्र खाली हो गया कारण उनका भोजन समाप्त हो गया था। असहाय होने के कारण वे जब श्रीकृष्ण को पुकारा तो तत्काल श्री भगवान आविर्भूत हुए और उन्होंने कहा, “देखो कुछ बचा ही नहीं।” भोजन पात्र के एक कोने में एक दाना अन्न पड़ा हुआ था उसी को तुलसी पत्र के साथ द्रौपदी ने अर्पण कर दिया एवं श्रीकृष्ण वो ग्रहण करते हुए तृप्त हो गए। जैसे श्रीकृष्ण तृप्त होकर डकार किया, आश्चर्य होकर देखा गया कि दुर्वासा मुनि एवं उनके सभी शिष्यगण स्नान करने के उपरांत ही डकार लेते हुए कहा, “हम लोग परिपूर्ण हैं इस समय भोजन करने में हम लोग असमर्थ हैं।”
अर्थात ईश्वर के तुष्ट होने से सब कोई अपने आप तुष्ट हो जाता है। इसका कारण नारद जी श्रीमद्भागवतम् (4:31:14) में एक श्लोक के माध्यम से प्रकाश किया –

यथा तरोर्मूलनिषेचनेन

तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखा:।

प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां

तथैव सर्वार्हणमच्युतेज्या।।

अर्थात जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से पेड़ की समस्त शाखा-प्रशाखा पत्ता को प्राण मिल जाता है एवं जैसे मुंह से भोजन करने से शरीर के संपूर्ण अंग-प्रत्यंग में पुष्टि मिल जाती है वैसे ही हे अच्युत! आपको तुष्ट करने से पूरी दुनिया तुष्ट हो जाती है।
स्वामी जी ने बताया कि यही भाव श्री रवींद्रनाथ ठाकुर एक रवींद्र संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया। उस संगीत में है – भक्त भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं, हे प्रभु! मेरा सब प्यार आपके पास ही आ जाए कारण आपके खुश रहने से सब कोई खुश रहेगा। मेरा सर्वप्रकार आशा आपके कान तक पहुंचे। अगर आप कभी हमें बुलाते हैं तब हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए ताकि आपके आह्वान से मेरा सर्व प्रकार बंधन मोचन हो जाए।”
पुनः भक्त प्रार्थना कर रहे हैं – “मेरा जितना बाहर का भीक्षा किया हुआ सामग्री है वो सब नष्ट हो जाए एवं मेरा हृदय आपका दिया हुआ दान से भरपूर हो जाए।”
स्वामी जी ने बताया कि आखिर में वो भक्त प्रार्थना कर रहे है, हे बंधु! हे मेरे हृदय की स्वामी! हमारे जीवन में जो कुछ सुंदर है वो आज आपके संगीत में गूंज उठे एवं हमारे जीवन को भरपूर कर दे।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा अगर हम लोग भी ऐसे आंतरिकता के साथ भगवान को पुकारे एवं भगवान की ओर हमारे मन को केंद्रित कर दे तब भगवान की अशेष कृपा से हमारा जीवन भगवत् केंद्रित होते हुए पूर्ण हो जाएगा। हमें सर्वदा याद रखना चाहिए कि पेड़ की जड़ में पानी डालने से पूरा पेड़ सिंचित हो जाता है, भोजन करने से सारा अंग प्रत्यंग भी तुष्ट हो जाता है वैसे ही ईश्वर की तुष्टि करने से सब कोई तुष्ट हो जाता है। अगर हम ईश्वर के चरणों में इस प्रकार प्रार्थना करते रहे तब श्री भगवान अवश्य हमें पूर्ण कर देंगे एवं हमें भरपूर कर देंगे और हमारा जीवन सफल और सार्थक हो जाएगा।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
श्री रामकृष्ण मठ लखनऊ।

Back to top button