डे नाईट न्यूज़ मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर होने वाली आर्थिक अनियमितताएं, भ्र्रष्टाचार और घोटलों की जांच करने के लिए सबसे ताकतवर और अहमएजेंसी माने जाने वाले आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ईओडब्ल्यू में अफसरों का टोटा है। ईओडब्ल्यू में जो अधिकारी पदस्थ थे, उन्हें सरकार ने एक झटके में हटा दिया और उनकी जगह नई पदस्थापना नहीं की है। जांच एजेंसी के हालात ऐसे बन गए हैं कि घोटाले की जांच पर तकरीबन ग्रहण लग गया है। अफसरों की पदस्थापना वाली फाइल पर जब तक अंतिम फैसला नहीं होता है, तब तक हालात इसी तरह बने रहेंगे।
मध्यप्रदेश में ईओडब्ल्यू के पास अभी देश के सबसे चर्चित ई-टेंडर घोटाले से लेकर कन्यादान घोटाला, प्याज घोटाला, राशन घोटाला, जबलपुर चर्च के पूर्व बिशप पीसी सिंह जबलपुर आरटीओ संतोष्ज्ञ पाल की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, महिला बाल विकास विभाग का आयरन फ्रेम घोटाला, बालाघाट के बिजली कंपनी के सहायक यंत्री दयाशंकर प्रजापति की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, भोपाल के स्वास्थ्य विभाग के क्लर्क हीरो केसवानी के घर भारी मात्रा में मिली नगदी सहित कई मामलों की जांच है। सितम्बर 2022 में ईओडब्ल्यू ने कोई बड़ी जांच एजंंसी ने एक भी अधिकारी-कर्मचारी की रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा है और उसके बाद किसी के ठिकानों पर छापामार कार्रवाई भी नहीं की गई है। पुराने मामलों की जांच भी ठंडे बस्ते में है। ऐसा इसलिए कि तकरीबन सभी मामलों की जांच करने वाले उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) और निरीक्षक (इंसपेक्टर) स्तर के अफसरों को ईओडब्ल्यू से हटाकर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया था।
ईओडब्ल्यू में पदस्थ अधिकारियेां को जब हटाया गया, तो विकल्प के तौर पर अफसरों की नई पदस्थापना नहीं की गई। यह स्थिति तब है जब ईओडब्ल्यू में पूरी जांच डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अफसर करते हैं। जिन अफसरों को हटाया गया था, उनमें एक दर्जन डीएसपी और तकरीबन डेढ़ दर्जन इंस्पेक्टर थे। यह बात सही है कि जिन अफसरों को हटाया गया है, वे लंबे समय से ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे। बहरहाला गृह विभाग और पीएचक्यू की जिम्मेदारी यह है कि अगर किसी अधिकारी को यहां से हटाया जा रहा है तो विकल्प भी देना था। ईओडब्ल्यू से तो अधिकारी थोक में हटाए गए हैं और उनकी जगह पर पदस्थापना एक भी नहीं की गई है। इसी का फायदा उठाकर ईओडब्ल्यू के आला अधिकारी स्थानांतरित किए गए थे।
बताते हैं कि गृह विभाग और पीएचक्यू के दबाव में अफसरों को ईओडब्ल्यू से कार्यमुक्त भी कर दिया गया था। अब यह स्थिति है कि ईओडब्ल्यू में अफसरों का टोटा है। करोड़ों रुपए के घोटाले की जांच लगभग ठप्प पड़ी हुई है। नई पदस्थापना नहीं होने से बड़े-बड़े घोटाले की जांच पर खासा असर पड़ रहा है। सूत्र बताते हैं कि ईओडब्ल्यू सागर इकाई में दो अधिकारी पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कमोबेश यही सििति भोपाल, इंदौर, रीवा, ग्वालियर और जबलपुर की भी है।
ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का तबादला होने के बाद उनके एवज में पदस्थापना करने के लिए डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के कुछ अफसरों ने नाम भेजे हैं। अफसरों के नाम रिकार्ड के आधार पर भेजे गए हैं, लेकिन तकरीबन एक माह का वक्त गुजर जाने के बावजूद अभी तक पदस्थापना नहीं की गई है। बताते हैं कि नई पदस्थापना के लिए फाइल एक टेबिल से दूसरे टेबिल में घूम रही है, लेकिन उस पर फैसला नहीं हो रहा है। इसका सीधा असर जांच एजेंसी की विवेचना पर पड़ रहा है।