
डे नाईट न्यूज़ एसटीपी प्लांट बनाए। नाले चैनालाइज किए। आउटफॉल, रोके। स्टोन पिचिंग की। घाट संवारे। दवा डालकर देख ली। दीप दान हुए। केंद्रीय सचिव की मौजूदगी में भव्य समारोह हुआ। इतना सब करने के बाद भी कानह नदी की शक्ल नहीं सुधरी। इधर, शहर के लोग अहमदाबाद और लखनु जैसे सिटी सेट्रिक रिवर फ्रंट की आस लगाए बैठे हैं।
जहां बैठकर सुकून के पल बिता सके। ऐसे में केंद्र सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत जो पांच अरब रुपए मंजूर किए हैं उससे नदी की दशा बदल जाएगी? संभावना कम है। वैसे भी इसकी गारंटी देने वाला कोई नहीं। नमामी गंगे प्रोग्राम के तहत केंद्र ने नौ प्रोजेक्ट्सा के लिए १२७८ करोड़ रुपए मंजूर किए हैं।
इनमें सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कान्ह-सरस्वती नदी है। जिसके लिए ५११.१५ करोड़ रुपए मंजूर किए। करीब ४० प्रतिशत, क्योंकि कान्ह-सरस्वतीका गंदा पानी पहले शिप्रा में मिलता है, फिर शिप्रा के जरिए चंबल और यमुना होते हुए गंगा में। ५११.१५ करोड़ का करना क्या है? अभी इसकी विस्तृत योजना बनाना है। अब तक एसटीपी प्लांट बनाए गए हैं ताकि नदी के पानी को शुद्ध किया जा सके। गंदे पानी की आवक को रोका गया है। नालों को पाइप में बंद करके एसटीपी तक पहुंचाया गया है।
ऐसे और भी काम हैं, जिन पर तकरीबन एक हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं। केंद्र ने इससे पहले खान को गंगा एक्शन प्लान में शामिल किया था और तय किया था कि २७१९ करोड़ रुपए लगाकर नदी को इंदौर से उज्जैन तक संवारा जाएगा। शहरी क्षेत्र में नदी के किनारे साबरमती रिवर फ्रंट की तरह रिवर फ्रंट बनाया जाएगा। पूरे काम के लिए सिंहस्थ २०२८ से पहले का लक्ष्य रखा गया है। सिंहस्थ में पांच साल बाकी हैं।
नदी की स्थिति वैसे ही है, जैसी कि सिंहस्थ २०१६ में थी। विशेषज्ञों की मानें तो स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर छह साल से भारत का सबसे स्वच्छ शहर है। २०२२ में वाटर प्लस सिटी भी चुनी गई। इसी शहर में बीचोंबीच से गुजरने वाली कान्ह नदी में बहता बदबूदार काला पानी तमाम इंदौर के सब गुणों पर भारी पड़ रहा है। यही रिवर फ्रंट विकसित करने का प्राथमिक कारण है। नदी की सफाई जरूरी है।