
डे नाईट न्यूज़ बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग में 20 साल पहले 2003 में संविदा पर हुई नियुक्तियों में घोटाले में लीपापोती करने वाले आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी है। विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से दबाए जा रहे इस मामले में नवनियुक्ति निदेशक सरनीत कौर ब्रोका ने नियुक्ति संबंधित फाइल सतर्कता विभाग को उपलब्ध न कराने वाले लिपिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के आदेश जारी कर दिए है। जल्द ही उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
शुरू से ही इस प्रकरण की जांच को दबाने की कोशिश जारी रही है। इस प्रकरण से संबंधित पत्रावली उपलब्ध कराने के लिए गृह विभाग अब तक आईसीडीएस निदेशालय को एक दर्जन से अधिक अनुस्मारक पत्र लिख चुका हैं, लेकिन निदेशालय द्वारा पत्रावली नहीं उपलब्ध कराई गई। इसी प्रकार सतर्कता विभाग भी निदेशाल को पत्रावली के लिए 9 पत्र लिख चुका है। लेकिन निदेशालय के कुछ अधिकारी और बाबू मिलकर इससे संबंधित फाइल को दबा रखा है।
अलबत्ता सतर्कता विभाग के 11 वें अनुस्मारक पत्र के जवाब में मौजूदा निदेशक ने 17 सितबंर-2019 को एक पत्र शासन को भेजा था, जिसमें नियुक्ति से संबंधित एक भी अभिलेख निदेशालय में उपलब्ध नहीं होने की बात भी कही गई थी। अर्थात सारे अभिलेख गायब हो गए हैं।
हाल में ही निदेशक का कार्यभार संभालने के बाद सरनीत कौर ब्रोका के संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने मामले की प्रारंभिक जानकारी लेकर संविदा पर नियुक्ति के संबंधित पटल देखने वाले सभी लोंगो के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। निदेशक के इस आदेश से निदेशालय में हड़कंप मचा है। वहीं, सूत्रों का कहना है कि निदेशक के निर्देश के मुताबिक एफआईआर हुई तो कम से कम एक दर्जन से अधिक लिपिक कार्रवाई की जद में आएंगे।
वर्ष 2003 में 63 सीडीपीओ और 353 मुख्य सेविका और 294 पदों पर चपरासियों की नियुक्ति संविदा पर की गई थी। शिकायत हुई थी कि यह नियुक्ति मानकों और नियमों को ताक पर रखकर की गई है। इसपर शासन ने विभागीय जांच कराई गई तो प्रारंभिक रिपोर्ट में अनियमितता की पुष्टि हुई थी। रिपोर्ट में तीनों पदों पर नियुक्ति में आरक्षण व्यवस्था व भर्ती प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी सामने आया था।
लिहाजा शासन ने इस प्रकरण की सतर्कता से जांच कराने की संस्तुति की थी। तभी से गृह विभाग बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग से संबंधित पत्रावली उपलब्ध कराने के लिए बार-बार पत्र लिख रहा है, लेकिन अब तक निदेशालय ने पत्रावली उपलब्ध नहीं कराई है। 2003 से लेकर अब तक आधे दर्जन से अधिक निदेशक आए व गए, लेकिन किसी ने दोनों मामलों से जुड़ी पत्रावली उपलब्ध नहीं कराया।