
डे नाईट न्यूज़ दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बिना योग्यता के एलोपैथी क्लिनिक चलाने वाला व्यक्ति निर्दोष नागरिकों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। यदि उसके खिलाफ जांच व उचित कार्रवाई नहीं की गई तो उसे क्लीनचिट देने के समान होगा। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने संबंधित एसएचओ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जब तक वह मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं हो जाता है, तब तक वह एलोपैथिक दवा की प्रैक्टिस न करे।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि मेरा विचार है कि अपील की अनुमति दी जानी चाहिए। प्रतिवादी के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं। प्रतिवादी आवश्यक चिकित्सा योग्यता नहीं होने के बावजूद चिकित्सा पद्धति के एलोपैथिक रूप में लिप्त है और निर्दोष नागरिकों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। अदालत ने निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली डीएमसी की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें व्यक्ति के खिलाफ गैर-पेशी और गैर-अभियोजन की शिकायत को डिफॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि न तो व्यक्ति ने डीएमसी के कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया है और न ही उसने अपनी योग्यता के समर्थन में कोई दस्तावेज दिया है। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता (डीएमसी) ने कानून के अनुसार कार्रवाई की है, लेकिन गैर-अभियोजन के कारण यह प्रतिवादी को क्लीनचिट देने के समान है।
हाईकोर्ट से अशनीर ग्रोवर और पत्नी को समन
हाईकोर्ट ने भारतपे के पूर्व प्रबंध निदेशक अशनीर ग्रोवर व उनकी पत्नी को समन जारी किया। यह समन भारतपे की उस याचिका पर जारी किया गया है, जिसमें ग्रोवर एवं उनकी पत्नी को कंपनी के खिलाफ मानहानि वाले बयान देने से रोकने का आग्रह किया गया है। भारतपे ने ग्रोवर और उनकी पत्नी पर कोष में हेराफेरी करने का आरोप लगया है। कोर्ट ने ग्रोवर, उनकी पत्नी माधुरी जैन और तीन अन्य संबंधियों को याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है। साथ ही सुनवाई जनवरी के लिए स्थगित कर दी। कंपनी ने अपनी याचिका में मांग की है कि कोष में कथित हेरफेर की वसूली और इसके ब्याज समेत कंपनी की प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान के एवज में ग्रोवर एवं अन्य को ब्याज समेत 88.67 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया जाए।
अशोक स्वैन की याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने भारत की विदेशी नागरिकता (ओसीआई) कार्ड रद्द करने के खिलाफ शैक्षणिक अशोक स्वैन की याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने स्वीडन निवासी की याचिका पर केंद्र को पक्ष रखने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया। स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय के शांति और संघर्ष अनुसंधान विभाग में प्रोफेसर और विभाग के प्रमुख ने अपनी दलील में कहा कि 2020 में जारी कारण बताओ नोटिस के अनुसार कथित आधार पर उनके ओआईसी कार्ड को मनमाने ढंग से प्रतिबंधित कर दिया गया था। उस पर आरोप लगाया गया कि वह भड़काऊ भाषणों और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त था। याची ने कहा कि इसके बाद इस साल 8 फरवरी को अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को उचित और न्यायपूर्ण अवसर दिए बिना ओसीआई कार्ड को रद्द कर दिया, जो उसके मुक्त आवागमन के अधिकार का उल्लंघन है।
छात्रा के खिलाफ प्राथमिकी रद्द
हाईकोर्ट ने कानून की प्रथम वर्ष की छात्रा के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द कर दिया। उस पर एक वकील के रूप में पंजीकृत किए बिना ट्रायल कोर्ट में पेश होने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने अपने आदेश में कहा कि कानून के छात्रों को प्रॉक्सी काउंसल (अन्य अधिवक्ताओं के लिए) या कानून की किसी भी अदालत के समक्ष किसी भी मामले में वकील के रूप में अदालतों के सामने पेश नहीं होना चाहिए था। उच्च न्यायालय ने हालांकि निचली अदालत की कार्यवाही के प्रतिलेखन की जांच की और कहा कि छात्रा या तो भ्रमित थी या उसके सामने पेश की गई स्थिति को संभालने में असमर्थ थी।
ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) के पूर्व प्रवर्तकों कपिल वधावन व उनके भाई धीरज को अधूरी चार्जशीट के आधार पर मिली जमानत संबंधी निचली अदालत के आदेश पर एक फरवरी तक रोक लगा दी। सीबीआई ने उन्हें करोड़ों रुपये के बैंक ऋण घोटाला मामले में गिरफ्तार किया था। न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने आदेश में कहा कि दोनों पक्षों की सहमति से यह निर्देश दिया जाता है कि 3 दिसंबर के आदेश को सुनवाई की अगली तारीख तक लागू नहीं किया जाएगा। वधावन के वकील और सीबीआई की सहमति के बाद उच्च न्यायालय का आदेश आया है। सीबीआई ने अधूरी चार्जशीट के कारण वधावन बंधुओं को वैधानिक जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।