
भारत सरकार द्वारा कपास पर 11% आयात शुल्क हटाने का किसान संघों ने विरोध किया है। हालाँकि, कपड़ा उद्योग ने इस कदम का स्वागत किया है, क्योंकि उसे ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए दंडात्मक 50% टैरिफ का बोझ उठाना पड़ रहा है। कपड़ा क्षेत्र, जो सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है, महिला परिधान श्रमिकों की छंटनी का सामना कर रहा है क्योंकि वैश्विक परिधान ब्रांड उच्च टैरिफ का बोझ ग्लोबल साउथ की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर डाल रहे हैं। भूराजनीति के अलावा, इस मुद्दे को भारत के कपास व्यापार में संरचनात्मक परिवर्तनों और कपास अनुसंधान एवं विकास में कमियों के संदर्भ में भी समझा जाना चाहिए। यह घरेलू आपूर्ति श्रृंखला में खेत-से-फर्म संबंधों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।भारत ने सोमवार को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सुरक्षा समझौते के तहत जकार्ता के सूती कपड़े पर आयात शुल्क लगाने के प्रस्ताव पर इंडोनेशिया के साथ परामर्श की मांग की। डब्ल्यूटीओ को भेजे एक पत्र में भारत ने कहा है कि इस कपड़े के निर्यात में उसका पर्याप्त व्यापारिक हित है। इसमें कहा गया, ‘‘भारत, इंडोनेशिया के साथ परामर्श का अनुरोध करता है।’’
डब्ल्यूटीओ आयात में अचानक वृद्धि से घरेलू उद्योग को बचाने के लिए अपने सदस्यों को सुरक्षा उपाय करने की अनुमति देता है। इसके तहत एक अस्थायी शुल्क लगाया जाता है। हालांकि, इस शुल्क या उपाय को लागू करने से पहले एक जांच की जाती है।
इसमें आगे कहा गया, ‘‘भारत प्रस्ताव करना चाहता है कि परामर्श… 23 सितंबर से 26 सितंबर, 2025 तक या पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तिथि और समय पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये आयोजित किया जाए। सुरक्षा समिति ने विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को इंडोनेशिया द्वारा 16 सितंबर, 2025 को जारी एक अधिसूचना भेजी है। भारत ने 2024 में 87.3 लाख अमेरिकी डॉलर मूल्य के सूती कपड़े का निर्यात किया, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 67.3 लाख अमेरिकी डॉलर था।