डे नाईट न्यूज़ प्रदेश में मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं पर अब विस्तृत अध्ययन हो सकेगा। ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को कम किया जा सके। शासन ने मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण और मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण निधि (कॉर्प्स फंड) को हरी झंडी दे दी है। उप सचिव सत्य प्रकाश सिंह की ओर से इसका शासनादेश जारी कर दिया गया है।
प्रदेश में प्रतिवर्ष 60 से 70 लोगों की मौत हो जाती है। इसी तरह ढाई से तीन सौ लोग घायल हो जाते हैं। ऐसी घटनाओं में तत्काल राहत पहुंचाने के लिए धामी सरकार ने मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ के साथ ही दो करोड़ रुपये के कॉर्प्स फंड की स्थापना की है।
प्रकोष्ठ में वन विभाग के एक वन क्षेत्राधिकारी, अनुबंध के आधार पर एक जीआईएस विशेषज्ञ और दो जेआरएफ, एसआरएफ विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाएगी। मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव (चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन) के कार्यालय के तहत संचालित होगा। प्रकोष्ठ की स्थापना राज्य में मानव एवं वन्यजीवों के मध्य होने वाली घटनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण किए जाने के लिए की गई है।
क्या काम करेगा प्रकोष्ठ
– प्रदेश में होने वाली प्रत्येक मानव वन्यजीव घटना का डाटा इकट्ठा करना
– घटना के बाद अनुग्रह राशि के भुगतान की स्थिति में अनुश्रवण करना
– सभी घटनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण
– अन्य देशों और प्रदेशों में इस विषय में उठाए जा रहे कदमों का अध्ययन
– प्रदेश में वन्यजीवों की गणना में भागीदारी
– अन्य तकनीकी कार्य
कॉर्प्स फंड में प्रतिवर्ष मिलेगी दो करोड़ रुपये की राशि
उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण निधि की (कॉर्प्स फंड) में प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार दो करोड़ रुपये तक की धनराशि उपलब्ध कराएगी। इस धनराशि में राज्य सरकार अपने विवेक से कमी एवं वृद्धि भी कर सकेगी। खास बात यह है कि धनराशि नॉन लेप्सेबल होगी। यानि हर साल जितना भी फंड बचेगा, वह आगे भी बना रहेगा और आगे जो राशि प्राप्त होगी, फंड में जुड़ती चली जाएगी।
मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण और मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण निधि का गठन उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण है। अब इस दिशा में अध्ययन के साथ वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ा जा सकेगा।– आरके सुधांशु, प्रमुख सचिव, वन एवं पर्यावरण