डे नाईट न्यूज़ अपने गुरुभाई को सोराइसिस जैसे चर्मरोग से पीडि़त देखा। चर्मरोग इतना भयाभ्य होकर गैंगरीन में बदल गया था। पीड़ा इतनी ज्यादा थी कि दिल पसीज गया। आंखों से आसंू आ गए। तय किया कि हर हाल में इस बीमारी को ठीक करना है। गुरुभाई को फिर स्वस्थ्य शरीर देना है। इसी जिद में पंचायती निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी महेशानंद गिरी ने हिमालय क्षेत्र से जड़ी बूटियां तलाशी। दवा बनाई। उपचार किया। दो साल बाद गुरुभाई ठीक हो गए। इसके बाद स्वामजी ने सोराइसिस मुक्त भारत का अभियान छेेड़ दिया। महेशानंद गिरी बाल्यकाल से सन्यासी है। सनयास की दीक्षा के साथ उन्होंने सन्तो के बीच रहकर आयुर्वेद और योग की शिक्षाप्रापत की।
अध्ययन के बाद स्वामी जी बाबा काली कमली वाले के पास ऋषिकेश आ गए। आश्रम में अपने गुरुभाई की शारीरिक दशा ने उन्हें नया चुनौथ्तयों के लिए तैयार किया। यह चुनौती है त्वचा के कैंसर कहे जाने वाले सोराइसिस जैसी लाइलाज बीमारी को इलाज किया जिसे लेकर महेशानंद गिरी ने अभियान छेड़ रखा है। 2013 में महामंडलेश्वर की उपाधि िमलने के बाद सिंहस्थ 2016 में शिविर लगाकर चर्मरोगियों का उपचार किया। इंदौर, उज्जैन और नासिक में शिविर लगाते आए हैं। कोविड-19 के दौरान इन शहरों में शिविर का जो सिलसिला थम गया था उसे दोबारा शुरु किया गया है। गुरुवार को प्रेस काम्पलेक्स में आयोजित शिविर में 300 से ज्यादा रोगियों से मिले और उनका उपचार किया। उन्होंने बताया कि एलोपैथी में सोरायसिस का पूर्ण इलाज नहीं है।
हमारी ओर से आयुर्वेद और यूनानी पद्धति को मिलाकर दवा तैयार की जाती है। अब हर मीने इंदौर और उज्जैन में शिविर लगेंगे। सोराइसिस के तीन कारण हैं। अनियमित भोजन। जिससे शरीर कुपोषित होता है और पित्ता इस रोग को जन्म देता है। दूसरा कारण गर्भस्थ महिलाआों के शुरुआत में अधिक पित्त बनने पर उचित इलाज नहीं कराती जिससे संतान में सोराइसिस की संभावना बनी रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के उल्टी होने पर उन्हें खटाई खिला देते हैं। इलाज नहीं कराते। केमिल युक्त खाद्य पदार्थ तीसरी वजह है। जो शरीर में व्याधियां पैदा करता है।