कोरबा: हायर सेकेंडरी स्कूलों में कृृषि संकाय समाप्त के कगार पर, छात्र-छात्राओं में निराशा

डे नाईट न्यूज़ जिले के हायर सेकेंडरी स्कूलों में कृृषि संकाय समाप्त के कगार पर आ गया है। खेती को व्यवसायिक रूप देने के उद्देश्य से छह साल पहले जिले के 12 स्कूलों में संकाय की शुरूआत की गई। शिक्षकों की नियुक्ति नहीं किए जाने से बच्चों ने दाखिला लेना छोड़ दिया। अब केवल पाली, करतला और रामपुर में ही इसका संचालन हो रहा है। विषय में रूचि रखने वाले दीगर विकासखंड के विद्यार्थियों को मजबूरी में दूसरा विषय चयन करना पड़ रहा है।

माध्यमिक शिक्षा मंडल ने बोर्ड कक्षाओं का परीक्षा परिणाम जारी दिया है। दसवीं उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थी अब 11 वीं की पढ़ाई के लिए विषय चयन की जुगत में जुड़ गए हैं। कला, विज्ञान व वाणिज्य विषय के लिए अधिकांश स्कूलों में विकल्प देखे जा रहे हैं। ऐसे मे कृषि विषय लेकर आगे की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं में निराशा देखी जा रही है। पांच साल पहले जिले के कृषि क्षेत्र वाले चुनिंदा स्कूलों में संकाय को शुरू किया गया था, जिसमे भैसमा, छुरी, चैतमा, कटघोरा आदि शामिल थे। बेहतर भविष्य क संभावना को लेकर खासी संख्या में विद्यार्थियों ने दाखिला भी लिया था। संकाय खोलने के बाद जिस तादाद में छात्र-छात्राओं दाखिला लिया उन्हे बाद में निराशा का सामना करना पड़ा। शासन ने संकाय की स्वीकृति तो दे दी लेकिन अध्यापन के लिए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की।

संकाय की पढ़ाई को कला और विज्ञान विषय के शिक्षकों के भरोसे कराई जा रही थी। परिणाम बेहतर नहीं आने कारण स्कूलों ने संकाय का संचालन बंद कर दिया। बताना होगा कि राज्य सरकार खेती को बढ़ावा देने के लिए नरवा, गरूवा, घुरूवा, बारी विकास पर कार्य कर रहा है। दूसरी ओर खेती से जुड़े विषय को उपेक्षित किया जा रहा। गोठान जैसी महत्वपूर्ण योजना को खेती किसानी से जोड़ा जा रहा है। गांव से युवाओं का शहर पलायन को रोकने के लिए कृषि को व्यवसायिक रूप देने की कवायद की जा रही है। वहीं कृषि संकाय की पढ़ाई के लिए विद्यार्थियों को शहर के निजी संस्थानों की ओर रूख करना पड़ रहा है। कृषि संकाय में इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा में 628 विद्यार्थी शामिल हुए।

कला, विज्ञान व वाणिज्य की तुलना में उत्तीर्ण प्रतिशत 64.5 रहा। जिन स्कूलों में संकाय चल रहा है वहां कृषि के बजाए विज्ञान और कला के शिक्षक पढ़ाई करा रहे हैं। विषय शिक्षक के अभाव में खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। जिले में अब तक 11 आत्मानंद विद्यालय की शुरूआत की जा चुकी है। विद्यालय के अस्तित्व में आने के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि यहां कृषि संकाय शुरू की जाएगी लेकिन एक भी स्कूल में भी शुरू नहीं हुई है।

कृषि संकाय के विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ प्रायोगिक तौर पर खेती की विधि भी सिखाने का प्राविधान है। इसके लिए स्कूल परिसर या आसपास में कृषि भूमि होना जरूरी है। जिन स्कूलों संकाय शुरू की गई थी वहां बंद होने का एक कारण जमीन की अनुपलब्धता है। संकाय संचालन के लिए प्राचार्य शासन से मांग कर सकते हैं, संसाधन के अभाव के कारण उनमें निष्क्रियता देखी जा रही। जिन स्कूलों में विषय की पढ़ाई हो रही है वहां जमीन तो उपलब्ध हैं लेकिन विषय शिक्षक के अभाव में परीक्षा परिणाम भी कमजोर हैं। जिले में कृषि महाविद्यालय की घोषणा चार साल पहले हो चुकी है।

अभी भवन उपलब्ध नहीं होने कारण इसका संचालन कटघोरा स्वामी आत्मानंद विद्यालय परिसर के जुगाड़ के भवन में हो रहा। स्नातक के छात्र-छात्राओं के प्रयोगशाला की सुविधा नहीं है। प्रायोगिक कार्य के लिए उन्हे लखनपुर के कृषि विज्ञान केंद्र जाना पड़ता है। महाविद्यालय के लिए भवन निर्माण की स्वीकृति तो हुई है, लेकिन निर्माण की धीमी गति के कारण विद्यार्थी सुविधा से वंचित हैं।

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