गोरखपुर: आधुनिक संयंत्रों ने परंपरागत खेती को दिया नया मुकाम

डे नाईट न्यूज़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले दिनकर चंद परंपरागत खेती में आधुनिक संयंत्रों का उपयोग किया, तो इनके दिन बहुरने लगे। चार दशक पहले तीन एकड़ के मालिक रहे चंद अब तीस एकड़ के मालिक बन गए हैं। खेती के स्वास्थ्य का ख्याल रखने के लिए वह जैविक खाद का अधिक उपयोग करते हैं। इसके जरिए वह उपज भी अच्छी लेते हैं। उनका मानना है कि आधुनिक संयंत्रों ने परंपरागत खेती को नया मुकाम दिया है। दिनकर चंद गोरखपुर के गगहा क्षेत्र के र्ने गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि जब खेती करना शुरू किया, तो तीन भाइयों (स्वर्गीय हरिश्चंद्र, शिवाजी चंद-ब्लॉक प्रमुख गगहा) के संयुक्त परिवार में मात्र तीन एकड़ खेत था।

आज हमारे पास 30 एकड़ से अधिक खेत है। इस दौरान सिर्फ खेत का का रकबा ही नहीं बढ़ा, और भी बहुत सी चीजें बदलीं। खेती के हर जरूरी आधुनिक संसाधनों जैसे जमीन को समतल करने की अत्याधुनिक मशीन लैंड लेजर लेवलर, खाद-बीज एक साथ गिरे, पौधे लाइन से उगें, खर-पतवार का नियंत्रण आसानी से हो सके इसके लिए हैप्पी सीडर, सिंचाई के दौरान पाइप के रिसाव से होने वाली पानी की बरबादी कम करने के लिए प्लास्टिक की मजबूत एचडी पाइप आदि की भी व्यवस्था हुई। इसके अलावा संयुक्त परिवार में 2 पेट्रोल पंप, इंटरलॉकिंग में उपयोग होने वाली सीमेंट की ईंट बनाने की एक यूनिट भी स्थापित हुई। ये जो कुछ है, खेती की ही बदौलत है। वह भी गेहूं एवं धान की परंपरागत खेती से ही।

उनके मुताबिक परंपरागत खेती बुरी नहीं है। शर्त यह है कि फसल के अनुरूप खेत की तैयारी हो। बोआई के लिए कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन्नत प्रजातियों का चयन करें और समय-समय पर कीटों एवं रोगों से बचाने के लिए फसल संरक्षा के जरूरी उपाय करें। खेत में हर एक साल के अंतराल पर हरी खाद एवं भूमि में कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए ढैंचे की बोआई करें। जहां तक संभव हो गोबर की खाद भी डालें। दिनकर चंद ये सारी चीजें खुद भी करते हैं। घर में अक्सर चार गायें रहती हैं। इससे गोसेवा भी हो जाती है। शुद्ध दूध, दही, घी के साथ गोबर की खाद बोनस है।

सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुना करने के सवाल पर वह कहते हैं, यह बिल्कुल संभव है। इसके लिए मुख्यमंत्री द्वारा न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन पर भी गौर करना होगा। खेती की सबसे बड़ी समस्या श्रमिकों की कमी है। एक तो ये उपलब्ध नहीं हैं। उपलब्ध भी हुए तो महंगे हैं। चंद के मुताबिक यंत्रीकरण ने यह काम आसान कर दिया है। सरकार का जोर भी इस पर है। अनुदान पर कृषि यंत्र दिये जा रहे हैं। अनुदान का भुगतान पारदर्शिता से किसानों के खाते में किया जाता है। दिनकर चंद ने बताया कि अगर आप हैप्पी सीडर के चोंगे में खाद-बीज डाल सकते हैं, तो खुद ट्रैक्टर से एक घंटे में एक एकड़ खेत बो सकते हैं। कंबाइन ने कटाई भी आसान कर दी है। यंत्रीकरण के जरिये आप समय और श्रम के रूप में लगने वाले संसाधन को बचाकर स्थानीय स्तर पर अपनी रुचि के अनुसार और भी काम कर सकते हैं।

हालांकि दिनकर चंद को कोई पुरस्कार नहीं मिला है। पर, पूरे इलाके में खेतीबाड़ी में रुचि रखने वाले जानते हैं कि गेहूं-धान की सबसे अच्छी उपज वही लेते हैं। उनके मुताबिक वह खरीफ के सीजन में 15 एकड़ में धान और रबी के सीजन में 30 एकड़ में गेहूं की खेती करते हैं। सब्जी, दलहन एवं तिलहन बस जरूरत भर की। पहले गन्ने की खेती भी करते थे, पर आसपास मिल न होने से वर्षों पहले इसे छोड़ दिया। उनकी गेहूं की प्रति एकड़ औसत उपज करीब 22 कुंतल और धान की प्रति एकड़ औसत उपज 20 से 25 कुंतल होती है। उनके मुताबिक साल में एक एकड़ खेत से करीब एक लाख रुपये की आय हो जाती है। समय के अनुसार परंपरागत खेती में भी वह नवाचार (इन्नोवेशन) करते रहते हैं। मसलन खरीफ में वह मंसूरी, सरजू-52, कालानमक, पूसा बासमती टाइप-1 की खेती करते हैं।

साथ ही सलाह देते हैं कि अपने इलाके के लिए महीन धानों में पूसा बासमती टाइप-1 सबसे बेहतरीन है। धान की खेती के लिए वह हरी खाद के लिए ढैंचे की बोआई कर चुके हैं। गेंहू में उनकी पसंदीदा प्रजातियां हैं-2003, 2967 और कर्ण वंदना। फिलहाल वह अब परंपरागत खेती को डाइवर्सिफाइड (विविधीकरण) करने के बारे में भी गंभीरता से सोच रहे हैं। अब तक के अनुसंधान से वह बताते हैं कि अपने क्षेत्र के लिए चीकू की खेती अच्छी है। इसके बाग में हल्दी की खेती करने से दोहरा लाभ संभव है। एक तो अतरिक्त आय होगी, दूसरे बाग का भी बेहतर रख रखाव हो सकेगा।

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