पटना: शराबकाण्ड पर मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में सरकारी लापरवाही हुई उजागार

डे नाईट न्यूज़ सारण में जहरीली शराब कांड की जांच करने बिहार पहुंची मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आ गई है।  रिपोर्ट ने राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और उत्पाद विभाग की अकर्मण्यता को उजागर किया है। सारण सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने केंद्रीय टीम बिहार भेजने की मांग सदन में उठाई थी जिसके बाद जांच के लिए यह टीम सारण पहुंची थी। सांसद ने कहा कि वो शुरू से कहते आ रहे है कि राज्य सरकार जांच में असहयोग कर रही है। मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट ने उसे पुख्ता किया है।

इसमें स्थानीय प्रशासन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से लेकर राज्य सरकार तक कटघरे में खड़े नजर आते है। रिपोर्ट में कुल 77 लोगों की मौत का उल्लेख किया गया है जिसमें साफ-साफ लिखा गया है कि मरने वालो में किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरीवाले, बेरोजगार थे। रिपोर्ट में यह साफ बताया गया है कि पीडि़तों में 75 फिसदी पिछड़ी जातियों से थे।
रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि जांच करने पहुंची टीम को राज्य सरकार से कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ।

रिपोर्ट में पटना उच्च न्यायालय की टिप्पणी का जिक्र किया गया है जिसमें कोर्ट ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू करने में सरकार की विफलता बताया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्ण शराबबंदी कानून का राज्य में कार्यान्वयन पूरी तरह से उत्पाद आयुक्त की जिम्मेदारी है, जिला में पुलिस अधीक्षक के सहयोग से जिलाधिकारी की जिसमें सभी फेल हुए। हुई मौतें पूरी तरह से मानवाधिकार का मामला है। रिपोर्ट में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि शराब कांड में मरने वाले किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरीवाले आदि कुछ बेरोजगार भी थे।

उनमें से ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर थे और अधिकांश मृतक पीडि़त परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे जिनके आश्रितों के रूप में उनकी पत्नियों और 2-3 नाबालिग बच्चे भी थे। उनके रहने की स्थिति ज्यादातर खराब थी। उनमें से कुछ नियमित रूप से शराब का सेवन करते थे, तो कुछ कभी-कभार। परिवार के अधिकांश सदस्य यह जानते थे कि पीडि़त/मृत व्यक्ति आवश्यकता पडऩे पर आसानी से स्थानीय क्षेत्र से शराब प्राप्त करने में सक्षम थे।

आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के यक्तियों की मृत्यु हुई, जो लोक सेवकों की घोर विफलता के कारण मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन मामला है। गरीब भोले-भाले लोगों को अवैध और नकली शराब के सेवन से रोककर उनके जीवन की रक्षा करें। इस तथ्य के बावजूद कि राज्य ने शराब की बिक्री पर रोक लगा दी है, लेकिन वह नकली और अवैध शराब की बिक्री को पूरी तरह से रोकने में सक्षम नहीं है, जिससे मानव जीवन का भारी नुकसान हुआ है, जिसके लिए राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।

जहरीली शराब से हुई मौत कांड में रिपोर्ट के अनुसार 77 लोगों की मौत हुई थी जिसे सामूहिक नरसंहार की संज्ञा दी गई थी। सांसद ने इसकी जांच के लिए सदन में केंद्रीय टीम भेजने की मांग की थी जिसके बाद मानवाधिकार आयोग की टीम बिहार गई थी। मालूम हो कि सारण और सीवान जिलों के मामले में मौके पर तथ्यान्वेषी जांच करने के लिए राजीव जैन के नेतृत्व में एनएचआरसी की एक जिसमें मनोज यादव, आईपीएस, डीजी (आई), सुनील कुमार मीणा, आईपीएस, डीआईजी, मीनाक्षी शर्मा (पीओ, बृजवीर सिंह, एआर (कानून), इसम सिंह, उप. सपा, राजेंद्र सिंह, उप. सपा, बी.एस. शेखावत, निरीक्षण निरीक्षक, नरेंद्र कुमार ओझा, इंस्पेक्टर, राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, कांस्टेबल, माधव नंदा राउत, कास्ट, दक्षता बाजपेयी जेआरसी, कीर्ति वशिष्ठ जेआरसी शामिल थे।

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