डे नाईट न्यूज़ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी की ग्रेच्युटी न देने पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने अपने आदेशों में कहा कि ग्रेच्युटी की अदायगी न करने पर प्रधान मुख्य अरण्यपाल वन के वेतन पर रोक रहेगी। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि बिना अदालत की अनुमति से प्रधान मुख्य अरण्यपाल के वेतन की अदायगी नहीं की जाएगी। मामले की सुनवाई 30 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता तुला राम को वर्ष 1990 में करसोग वन खंड में दैनिक वेतनभोगी के पद पर तैनात किया था। विभाग ने वर्ष 2007 में उसकी सेवाओं को नियमित किया और 2010 में वह सेवानिवृत्त हो गया। 2018 में याचिकाकर्ता ने ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत याचिका दायर की। 29 सितंबर 2019 को सक्षम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को 1,18,977 रुपये की ग्रेच्युटी के लिए हकदार ठहराया।
इस निर्णय को वन विभाग ने किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी। ग्रेच्युटी की अदायगी न किए जाने पर याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को तीन वर्ष पहले ग्रेच्युटी का हकदार ठहराया गया था। इतना ही नहीं उसे रिकवरी प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। याचिकाकर्ता 73 वर्ष पार कर चुका है और वन विभाग उसे ग्रेच्युटी की अदायगी करने में आनाकानी कर रहा है। 6 दिसंबर को हाईकोर्ट ने वन विभाग को आदेश दिए थे कि 15 दिन के भीतर याचिकाकर्ता की ग्रेच्युटी की अदायगी की जाए। अदालत ने 27 दिसंबर के लिए अपने आदेशों की अनुपालना तलब की थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि ग्रेच्युटी के 1,18,977 रुपये की एवज में उसे केवल 1,04,439 रुपये ही अदा किए गए। ग्रेच्युटी के पूरे पैसे अदा न करने पर अदालत ने यह आदेश पारित किए।
एचपीएसआईडीसी के कर्मियों को सरकारी की तर्ज पर नहीं मिलेगी ग्रेच्युटी
प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य उद्योग विकास निगम के कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने निर्णय दिया है कि निगम के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर ग्रेच्युटी देने का फैसला उचित नहीं है। अदालत ने राज्य सरकार के इस फैसले को निरस्त कर दिया। राज्य उद्योग विकास निगम कर्मचारी यूनियन ने सरकार के उस निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी, जिसके तहत निगम के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर ग्रेच्युटी देने का निर्णय लिया गया था। अदालत ने 24 अक्तूबर 2011 और 22 फरवरी 2012 के आदेशों को निरस्त करते हुए निगम को आदेश दिए कि वह कर्मचारियों को ग्रेच्युटी दिए जाने के बारे में नियमों में संशोधन करे। मामले के अनुसार याचिकाकर्ता यूनियन के कर्मचारी निगम के नियमों के तहत ग्रेच्युटी के हकदार थे।
निगम ने वर्ष 1990 को नियमों में संशोधन किया कि निगम के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर ग्रेच्युटी अदा की जाएगी। इस संशोधन पर याचिकाकर्ता यूनियन के कर्मचारियों ने आपत्ति दर्ज की। निगम ने 1992 मेें निर्णय लिया कि उनके कर्मचारियों को नियमों के अनुसार ही ग्रेच्युटी की अदायगी की जाएगी। निगम के नियमों के अनुरूप ग्रेच्युटी अदा करने पर वर्ष 2011 में महालेखाकार के अधिकारियों ने आपत्ति दर्ज की। 14 अक्तूबर 2011 को राज्य सरकार ने निगम को आदेश दिए कि वह 1990 के संशोधित नियमों के अनुरूप ही ग्रेच्युटी की अदायगी की जाए। अदालत ने पाया कि जब सरकार पर निगम के कर्मचारियों का वित्तीय भार नहीं है तो इस स्थिति में वह निगम के नियमों को संशोधित करने के आदेश कैसे पारित किए जा सकते हैं। अदालत ने याचिकाकर्ता निगम कर्मचारियों की याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में जंगी-थोपन मामले की सुनवाई 12 जनवरी को निर्धारित की गई है। अदालत ने अदाणी समूह और राज्य सरकार की दोनों अपीलों की सुनवाई एक साथ निर्धारित की है। किन्नौर जिले की जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत परियोजना शुरू से ही विवादों में रही है। विदेशी कंपनी ब्रेकल के बाद अदाणी समूह भी इस परियोजना को नहीं बनाना चाहता है। 960 मेगावाट के महत्वपूर्ण हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को ब्रेकल को वर्ष 2007 में आवंटित किया गया। कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया और अपफ्रंट राशि जमा नहीं करवाई।
इसके बाद यह प्रोजेक्ट अदाणी कंपनी को दिया गया। समूह ने प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये जमा किए। बाद में इस परियोजना के टेंडर को रद्द कर दिया गया। ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अदाणी समूह के पार्टनर के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये ब्याज सहित वापस करने के लिए आग्रह किया। अक्तूबर 2017 में कैबिनेट मीटिंग में वीरभद्र सिंह सरकार ने फैसला लिया था कि अदाणी समूह को पावर प्रोजेक्ट की 280 करोड़ रुपये की अपफ्रंट मनी वापस की जाएगी, लेकिन 5 दिसंबर, 2017 को सरकार ने यह फैसला वापस ले लिया।
चंबा जिला के भलेई कॉलेज का भवन न बनवाने के मामले में राज्य सरकार ने जवाब दायर नहीं किया है। इसके लिए मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने अतिरिक्त समय दिया है। अदालत ने मुख्य सचिव और प्रधान सचिव शिक्षा से तीन हफ्ते में जवाब तलब किया है। मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद निर्धारित की गई है। अदालत ने अमर उजाला में प्रकाशित खबर के आधार पर जनहित में याचिका दायर की है। चंबा जिले के भलेई कॉलेज का अपना भवन न होने की समस्या को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। वर्ष 2021 तक प्राइमरी स्कूल भवन में पढ़ाई चलती रही।
प्राइमरी स्कूल की इमारत जर्जर होने के बाद स्थानीय पंचायत से एक साल के लिए दो कमरे किराये पर लिए गए। बारिश के कारण कमरे भी खस्ताहाल हो गए हैं। जहां विद्यार्थियों को बैठाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। कॉलेज का सामान भी इन खस्ताहाल कमरों में रखा गया है। हालांकि, इस बारे में प्रशासन को कई बार अवगत करवाया जा चुका है। अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो सका है। बताया जा रहा है कि नजदीक में ही एक पर्यटन विभाग का भवन है। पांच साल बीत जाने के बावजूद भी कॉलेज का अपना भवन नहीं है।