
डे नाईट न्यूज़ मथुरा के अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) सोनिका वर्मा की अदालत द्वारा ईदगाह का निरीक्षण कर अमीन रिपोर्ट दिए जाने के आदेश के बाद संस्थान की जमीन पर रह रहे अन्य लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की इस जमीन पर रह रहे 32 मुस्लिम परिवारों का टैक्स अदा कर रहा है। इन परिवारों को 1968 में र्श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ तथा ईदगाह पक्ष में हुए समझौते के बाद एक तरफ किया गया। उससे पहले यह पूरी जमीन का उपयोग कर रहे थे।
समझौते में के दूसरे बिंदु के संबंध में स्पष्ट किया गया है कि दीवारों के बाहर उत्तर व दक्षिण की ओर जो मुस्लिम आबादी है, उसको ट्रस्ट ईदगाह अपनी जिम्मेदारी पर खाली कराकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को सौंपेगा और इनकी मिल्कियत से ट्रस्ट शाही ईदगाह या अन्य किसी मुसलमानों को कोई वास्ता नहीं होगा। यह जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की मिल्कियत समझी जाएगी और उसी तरह से उत्तर दक्षिण की दीवारों के भीतर की भूमि की मिल्कियत से श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को कोई वास्ता नहीं होगा । यह मिल्कियत द्वितीय पक्ष यानि कि ईदगाह पक्ष की समझी जाएगी।
श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि आज भी 13.37 एकड़ जमीन के एक हिस्से पर 32 मुस्लिम परिवार के करीब 400 सदस्य रह रहे हैं। इनकी जमीन का निगम संबंधी टैक्स र्श्री कृष्ण जन्मस्थान संस्थान दे रहा है। इस जमीन का मालिकाना हक संस्थान के पास है। इसी जमीन पर दूसरी ओर कुछ हिंदू परिवार भी रह रहे हैं, जिसका मालिकाना हक भी जन्मस्थान सेवा संस्थान के पास है। समझौते को दी चुनौती
वादी विष्णु गुप्ता के अधिवक्ता शैलेष दुबे ने बताया कि ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर कौन-कौन रह रहा है, इसकी जानकारी जुटा रहे हैं। इसे केस का हिस्सा बनाएंगे। हमने 1968 में हुए पूरे समझौते को अदालत में चुनौती दी है।’
रद्द हो समझौता
वादकारी मनीष यादव ने बताया कि ‘हमने वर्ष 1968 में हुए समझौते को ही रद्द करने की मांग अदालत से की है। इस बिंदु पर हम अदालत में चुनौती देंगे।’
अलग से रखेंगे मामला
अधिवक्ता स्वयं वादी महेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि ‘हमने वर्ष 1968 के समझौते को ही अपने दावे में दी चुनौती है परंतु इस मामले को हम अलग से अदालत के समक्ष रखेंगे।’
पहले से ही हैं काबिज
ईदगाह कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने बताया कि ‘इस जमीन पर वर्ष 1968 में हुए समझौते के बाद से कुछ मुस्लिम परिवार रह रहे हैं जो कि गलत नहीं हैं। वह पहले से ही काबिज हैं।’