
डे नाईट न्यूज़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने और भाजपा के रिवाज बदलने के नारे के ठीक उलट रहे परिणाम आने के बाद राजनीतिक विशेषज्ञों की नजर में चुनाव की घोषणा के पहले रोज ही प्रदेश में सत्ता परिवर्तन तय था। निवर्तमान भाजपा सरकार की ऐसी कोई विशेष उपलब्धियां जनता को नजर नहीं आईं, जिससे प्रदेश में रिवाज बदलता। छह बार मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह और दो बार मुख्यमंत्री रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रो. प्रेम कुमार धूमल रिवाज नहीं बदल पाए, जिनकी जनता में पकड़ थी, तो भाजपा की निवर्तमान सरकार कैसे रिवाज बदल कर पुन: सत्ता में आती। इन चुनावों में प्रदेश के जागरूक मतदाताओं ने फिर से अपनी समझ का प्रमाण दिया है।
प्रदेश के मतदाता ने हर चुनाव में बदलाव को बेहतरी का सूचक मानकर अपने मत का प्रयोग किया है, इस बार भी वही किया। कांग्रेस ने जीत के लिए ठोस रणनीति बनाई। सीमित संसाधनों के बावजूद बेहतरीन तरीके से चुनाव लड़ा। प्रतिभा सिंह को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाना, प्रदेश के दिग्गज नेताओं का मतभेदों को भुलाकर चुनाव में एकजुट होकर उतरना, अपने को फिर से साबित करने को जमीनी स्तर पर मेहनत और आम मतदाताओं में पार्टी के प्रति विश्वास जागृत करना, ऐसे कारण रहे, जिससे कांग्रेस ने जीत दर्ज की।
कांग्रेस की जीत में दूसरा महत्वपूर्ण कारण कांग्रेस का सत्तासीन भाजपा सरकार को हिमाचल के मुद्दों पर घेरना, अपने घोषणा पत्र को कर्मचारी, किसान, मजदूर, आम आदमी पर केंद्रित करना रहा है। इसमें ओपीएस, सोलन की रैली में प्रियंका गांधी का अग्निवीर योजना को बंद कर पुराने तरीके से भर्ती करवाने की बात ने मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर जैसे कई राज्यों के युवाओं और लोगों तक पकड़ बनाई। घोषणा पत्र में महिलाओं को 1500 रुपये देने की घोषणा, 300 यूनिट बिजली, बागवानों को फसल का सही दाम देने जैसी घोषणाओं ने भी मतदाताओं को प्रभावित किया हे।
इसके ठीक विपरीत भाजपा के घोषणा पत्र में यूनिफार्म सिविल कोड, पहाड़ी प्रदेश में छात्राओं को साइकिल देने जैसी घोषणाएं शामिल कर उत्तर प्रदेश के घोषणा पत्र को हिमाचल में जारी करने का प्रयास किया। बीजेपी ने छोटे से पहाड़ी प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर केंद्रित घोषणा पत्र को जारी कर इसे 2024 कके केंद्र के चुनावों के लिए प्रयोग किया, जो सफल नहीं रहा। भाजपा इन चुनावों में बागियों को मनाने में नाकाम रही। मोदी फैक्टर की जगह स्थानीय मुद्दे चुनावों में हावी रहे। भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की रैलियां मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाईं। वहीं इस चुनाव में अंतिम क्षणों में प्रो. प्रेम कुमार धूमल जैसे कद्दावर नेता से चुनाव न लड़ने की घोषणा न करवाना, उनकी अनदेखी ने भी चुनाव को प्रभावित किया है। हर चुनाव की तरह महंगाई, बेरोजगारी, ओपीएस कर्मचारियों, किसान बागवानों, युवाओं से जुड़े मुद्दों ने चुनाव को प्रभावित किया है।
कांग्रेस के समक्ष मुख्यमंत्री का नाम तय करने की चुनौती
चुनावों में भले ही प्रदेश के मतदाताओं ने कांग्रेस को पूरे बहुमत के साथ जिताया है, मगर कांग्रेस के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व के सामने अब बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री का नाम तय करने की है। विधायकों के साथ सलाह कर बिना किसी विवाद के सहमति बनानी होगी।
वरिष्ठ प्रोफेसर रमेश चौहान, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में सेवारत हैं।