
डे नाईट न्यूज़ आयुष्मान खुराना का वैसे तो नाम ही काफी है, किसी हिंदी फिल्म की एक अलग पहचान के लिए। लेकिन, समाज में वर्जित विषयों पर लगातार फिल्में करते रहे आयुष्मान ने अपनी एक जैसी फिल्मों की लीक छोड़कर इस बार एक संपूर्ण मनोरंजक फिल्म की है। नाम भी एकदम बॉलीवुड टाइप है, ‘एन एक्शन हीरो’। आयुष्मान के सिनेमा पर अगर गौर से नजर डालें तो समझ आता है कि जब तक वह सिर्फ एक साधारण अभिनेता बने रहे, उनकी फिल्में कामयाब होती रहीं। लेकिन, जब उन्होंने ‘आयुष्मान खुराना टाइप’ फिल्में करनी शुरू की, तो ‘गुलाबो सिताबो’, ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ और ‘अनेक’ बनीं और उनके प्रशंसकों को पसंद नहीं आईं। इस बार उन्होंने हिंदी सिनेमा के 70 और 80 दशक के तेवर की फिल्म की है। फुलटू मसाला फिल्म। हीरो और विलेन की आमने सामने की भिड़ंत। खूब गुत्थमगुत्था वाले सीन और हैं कम से कम दो उत्तेजक आइटम नंबर, जिनके बारे में थोड़ा रुककर बात करते हैं।
लंबे समय तक अपने सहायक रहे अनिरुद्ध अय्यर पर निर्माता आनंद एल राय ने फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ में दांव खेला है और अपनी पहली फिल्म बना रहे अनिरुद्ध अपनी काबिलियत साबित करने में सफल भी रहे हैं। फिल्म में चलती फिल्म वाली इस कहानी का हीरो मानव है। सुपरस्टार है। उसका अपना स्वैग है। परदे पर भी और निजी जिंदगी में भी। उसके सेट पर एक हादसा होता है। जो मरा है, वह हरियाणा के एक अक्खड़ नेता का भाई था। मामला कैणा तब होता है जब ये नेता अपने भाई की मौत का बदला लेने हीरो के पीछे पीछे लंदन पहुंच जाता है। कोरोना काल में बनी ज्यादातर फिल्में भारत के बाहर ही शूट हुईं क्योंकि वहां पाबंदियां थोड़ी कम थीं। ‘एन एक्शन हीरो’ भी उसी काल खंड में बनी फिल्म है और उन दिक्कतों को देखते हुए अनिरुद्ध ने अपनी कोशिशों में काफी हद तक सफलता पाई है।
फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ एक तरह से आयुष्मान खुराना के लिए एक सबक है और ये सबक शायद उन्होंने इस फिल्म को शुरू करने से पहले ही सीख लिया। जैसे कि क्रिकेट टीम में होता है कि एक बल्लेबाज अगर न चले तो दूसरा, तीसरा या चौथा आकर पारी संभाल सकता है। सिनेमा भी कुछ कुछ वैसा ही है। अगर एक फिल्म में हीरो के साथ दमदार विलेन हो, मादक हीरोइन हो, चहकते फुदकते कुछ साथी कलाकार हों तो दर्शक का ध्यान किसी एक किरदार के ही पोस्टमार्टम पर टिक नहीं पाता है। अनिरुद्ध की ये होशियारी यहां काम आई है। वह आनंद एल राय के शागिर्द हैं लेकिन सिनेमा उनका खालिस अपना है। कहीं से भी उनके निर्देशन पर अपने मेंटॉर की छाप नहीं दिखती। अनिरुद्ध की तारीफ इसलिए भी करनी होगी क्योंकि अपनी पहली ही फिल्म में वह एक ऐसी कहानी के लिए आयुष्मान को राजी करने में सफल रहे जिसमें उनके साथ कोई हीरोइन नहीं है।
बिना हीरोइन की फिल्म का मजा हालांकि ‘एन एक्शन हीरो’ में डाले गए रीमिक्स गाने खराब करते हैं और ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसा फिल्म ‘विक्रम वेधा’ के साथ हुआ। ऋतिक रोशन की एक एक्शन फिल्म की उम्मीद लगाए बैठे दर्शक फिल्म का पहला गाना ‘अल्कोहोलिया’ देखते ही निराश हो गए। फिल्म को लेकर बनी हाइप का पूरा बुलबुला इस एक गाने ने फोड़ दिया। फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ को देखने की उत्सुकता कम करने के गुनहगार फिल्म की रिलीज से पहले जारी किए गए इसके दोनों गाने ‘जेडा नशा’ और ‘आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए’ हैं। अनिरुद्ध की शायद फिल्म के निर्माताओं के सामने चली नहीं और इसके लिए उन्होंने भी हथियार डाल ही दिए होंगे। बिना गानों की ये एक बेहतरीन फिल्म हो सकती थी।
इन खामियों के बावजूद फिल्म को संवारने में नीरज यादव के लिखे चुटीले संवाद, कौशल शाह की बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी, निनाद खानोलकर की चुस्त एडिटिंग और माणिक बत्रा की कमाल की साउंड डिजाइन बहुत मदद करती है। अनिरुद्ध ने अपनी तकनीकी टीम बेहतरीन चुनी है और इसीलिए उनकी फिल्म देखने का आनंद भी आखिर तक बना रहता है। आनंद एल राय के चहेते हीरो का स्पेशल अपीयरेंस फिल्म का पैसा वसूल लम्हा है। फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ एक तरह से देखा जाए तो जयदीप अहलावत की फिल्म है। अगर आप इस अभिनेता के प्रशंसक रहे हैं तो फिल्म देखने का मजा और आएगा। हां, जयदीप के लिए ये सोचने वाली बात है कि वह एक ही बोली को लगातार पर्दे पर बोलकर कहीं अपने आसपास अभिनय की लक्ष्मण रेखा तो नहीं खींच रहे।
आयुष्मान खुराना को हिंदी सिनेमा में अभी लंबी पारी खेलनी है। अच्छा ही है कि फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ में वह चौके छक्के लगाने की बजाय थोड़ा सधी हुई एक्टिंग करते दिखे। हालांकि, जो वह इस फिल्म मे कर रहे हैं, वह उनके अब तक के सिनेमा को देखने वालों के लिए हैरानी मे डालता है लेकिन इसी में इस किरदार की जीत है। आयुष्मान ने इतने नकचढ़े इंसान का किरदार पहले किया नहीं है तो शुरू शुरू में थोड़ा अटपटा भी लगता है। परदे की अपनी शख्सीयत को अपनी निजी जिंदगी में लाते समय कहीं कुछ खटकता है पर अनिरुद्ध ने कहानी में इतने जंप कट्स रखे हैं कि मामला बिगड़ने से पहले ही संभल जाता है। एक किरदार फिल्म में जितेंदर हुड्डा ने भी निभाया है, कम देरी के लिए आए इस कलाकार पर हिंदी फिल्मकारों को अभी से नजर रखने की जरूरत है। मौका मिला तो जितेंदर लंबे रोल में भी कमाल दिखा सकते हैं।